तुम्हारी यादें

A poem of love & remembrance

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Juhi Prakash Singh
Juhi Prakash Singh 26 Jan, 2021 | 1 min read

यूँ तो तुम हमेशा याद आती हो

लेकिन आज कुछ ज़्यादा ही याद आ रही हो


क्या तुमने खुद आकर के यादों के तारों को झिंझोड़ दिया ?

इन सर्द हवाओं के पंखों पर बैठकर भावनाओं को दुबारा झकझोर दिया ?


कहाँ हो तुम और कैसी हो यही सोचती रह गयी हूँ अब

क्या उस पार से इस पार देख सकती हो तुम बस यही कुछ सवाल उठाती रह गयी हूँ अब


मैं जानती हूँ की इन सवालों का कोई जवाब नहीं

पर यह दिल है की मानता नहीं


यह मानता नहीं की तुम कभी न मिलोगी अब

केवल यादों मैं सिमटकर ही मिल पाओगी


अब मिलेंगे तुमसे उस पार जब ईश्वर चाहेंगे

तब तक तुम्हारी यादों के सहारे जीते चले जायेंगे


यूँ तो तुम हमेशा याद आती हो

लेकिन आज कुछ ज़्यादा ही याद आ रही हो..

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Juhi Prakash Singh

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