बिन कुछ कहे भी बहुत कुछ कह जाती हैं ये आँखें,
लगा हो चाहे लबों पर ताला पर फिर भी काफी कुछ बता जाती हैं ये आँखें ।
हो दिल दुखी तो मायूसी झलका जाती हैं ये आँखें,
निशब्द रहकर भी मन के अंतर्द्वंद्व का झरोखा हो जाती हैं ये आँखें ।
होंठों से कह लो चाहे झूठी फसाने लेकिन सच्चाई खोल जाती हैं ये आँखें ,
तारीफों के झूठे पुल मुख से जितना चाहो बांध लो, लेकिन चापलूसी की झूठी चमक दिखा ही जाती हैं ये आँखें ।
कभी तो अनकहे प्यार को अपनी नज़रों के अंदाज़ से कह जाती हैं ये आँखें,
तो कभी नफरत की ज्वाला की चिंगारीयां बरसा जाती है ये आँखें ।
कहते हैं की मन का आइना होती हैं हमारी ये आँखें
होती हैं ये मासूम औऱ नादान, नहीं छुपा पाती छल कपट तभी तो ये आँखें ।
आँखों ही आँखों में इशारा कर जाती हैं ये आँखें,
राज़ों को पर्दानशीं रखना है यह भी इशारा कर जाती हैं ये आँखें ।
है खुद पर विश्वास तो ये विश्वास भी चमकाकर दृढ़ कर देती हैं ये आँखें,
दम्भ औऱ अहंकार की लौ भी अपने में देहकाती हैं ये आँखें ।
अन्तर के जज़्बात, हुनर औऱ काबिलियत अपने आईने में दर्शाती हैं ये आँखें,
मन मैला है या दूध सा उजला अपने आईने में उजागर कर जाती हैं यह आँखें ।
आँखों में आँखें डालकर अपनी सच्चाई का बयान कर जाती हैं ये आँखें,
झुकाकर अपनी पलकें अपने झूठ को झलका जाती हैं ये आँखें ।
पापों के घड़े जब भर जाते हैं तो ये आँखें प्रलय का आगाज़ भी कर जाती हैं ,
वो भोले नाथ की तीसरा नेत्र ही है जो खुलकर महाप्रलय का तांडव करवाती है ।
परमात्मा भी अपना श्राप या वरदान देते अपने दिव्य नेत्रों ही से हैं,
जब हो परमात्मा के दर्शन, उनकी आँखों में आँखें डालकर मांगिये जो माँगना है वर उनसे,
प्राप्त हो जायेगा आपको सब कुछ उनकी अतुल्य दिव्य दृष्टि के प्रसाद में ।
©️जूही प्रकाश सिंह
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