पहला प्यार

Childhood crush

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Juhi Prakash Singh
Juhi Prakash Singh 12 Feb, 2021 | 1 min read

बात जब की है जब रूपा कक्षा चौथी की छात्रा थी | स्कूल जाना उसे बेहद पसंद था, अपनी सहेलियों से मिलना तो उसे पसंद ही था लेकिन रोज़ नई चीज़ों के बारे मैं जानना उसको स्कूल जाने के लिए ज़्यादा प्रेरित किया करता था |


उसे सबसे ज़्यादा इंतज़ार रहता चित्राकला की क्लास का | आज शुक्रवार था और आखिर चित्रकला के क्लास का समय आ ही गया था , रूपा बहुत उत्सुकता से इंतज़ार कर रही थी रानी मैडम के आने का, लेकिन, यह क्या!, बजाय रानी मैडम के, प्राध्यापिका मैडम आती दिखीं, साथ में थे एक लड़के जैसे दिखने वाले अंकल |


रूपा की उत्सुकता कुलांचे भरने लगी , "कुछ ख़ास है शायद", रूपा ने सोचा| प्राध्यापिका मैडम ने साथ आए लड़के जैसे दिखनेवाले अंकल का परिचय देते हुए कहा , " आज से आपकी चित्रकला कि क्लास रानी मैडम की जगह श्री मोहन जी लिया करेंगे "| यह कहकर प्राध्यापिका मैडम श्री मोहन जी को कक्षा में छोड़कर चली गयीं |


यह सुन रूपा थोड़ी उदास हुई क्योंकि उसे रानी मैडम बड़ी पसंद थीं | अब उसका ध्यान नए अध्यापक पर गया, दिखने में तो उसे वह कोई ख़ास नहीं लगे लेकिन, उसने सोचा कि शायद अच्छा सिखाते होंगे, इसलिए इनको स्कूल में जगह दी गयी है |


मोहन सर ने एक गांव का चित्र ब्लैकबोर्ड पर बनाना शुरू किया व समझाने लगे की किस प्रकार से चित्रों को खींचा जाता है | सभी छात्र अपना काम कर रहे थे लेकिन रूपा थोड़ी असमंजस में थी, उसे खेत का चित्र ठीक से नहीं आ रहा था बनाना, अगर रानी मैडम होतीं तो फट से जाकर पूछ लेती , इन नए सर से उसे पूछने में शर्म आ रही थी पता नहीं क्यों | सर को देखकर कुछ अलग ही सा एहसास रूपा को पहली बार हो रहा था |


रूपा इसी पसोपेश में थी कि सर ने उसे आवाज़ लगाकर कहा, " बेटा , क्या नाम है आपका , आप अपना काम क्यों नहीं कर रहीं ? क्या कुछ समझना चाहती हैं ?" यह सुन रूपा कि तन्द्रा टूटी और आसमान से धरातल पर आकर धम्म से गिरी | सर उसे एकटक देख रहे थे और यह देख रूपा के गाल शर्म से गुलाबी हो गए थे| सर को जवाब देने में भी लड़खड़ा गयी रूपा | खैर, स्कूल की घंटी बजी और छुट्टी हो गयी |


घर जाते हुए रूपा को मोहन सर फिर से मिल गए और उन्होंने उसे रोककर दुबारा पुछा कि उसे समझ मैं सब आया की नहीं तथा अगली क्लास में उसका कार्य वह अवश्य देखेंगे | यह सुन मानो रूपा तो सांतवे आसमान पर ही थी |


घर पहुंचकर जल्दी से हाथ मुँह धोकर अपना खाना खाकर कमरे में चली गयी | आज उसने माँ से भी ज़्यादा बात न की| अपना चित्रकला का काम निकाला और खूब लगन से उसे पूरा किया , कहीं न कहीं मोहन सर को खुश करने की प्रबल इच्छा उसके मन में घर कर चुकी थी |


अगले दिन सुबह सुबह बिना माँ की गुहार के उठकर स्कूल के लिए तैयार थी , नाश्ता निगलकर बस स्कूल पहुंचना था जल्दी से उसे, पहली क्लास चित्रकला की जो ठहरी थी | मोहन सर के कक्षा में प्रवेश करते ही रूपा ने अपना हाथ ऊपर कर दिया , प्रणाम करने से भी पहले | सर ने आश्चर्य चकित हो उसे अपने पास बुलाया तो रूपा का ह्रदय गदगद हो उठा और दौड़कर पहुँच गयी उनके पास | रूपा का काम देख मोहन सर बहुत प्रसन्न होकर सभी छात्रों की तरफ मुखातिब हो बोले ," यह देखिये आप सब , रूपा ने कितना साफ़ व सुन्दर चित्र बनाया है , आप सभी को उसके जैसे ही कोशिश करनी चाहिए |"


बस फिर क्या था, रूपा तो मोहन सर के आस पास एक गुलाबी रौशनी देखने लगी , अचानक बस मोहन सर की हर कही बात उसे मानो चाशनी में घुली प्रतीत होती | 


अगले हफ्ते शिक्षक दिवस शुक्रवार के दिन पर ही पड़ रहा था| रूपा बहुत खुश थी व उसने सोच लिया कि शिक्षक दिवस पर वह मोहन सर के लिए ही कार्ड बनाएगी | दुनिया में सबसे अच्छे अब रूपा को सिर्फ एक ही व्यक्ति लगने लगे था, और वह थे उसके मोहन सर |


- जूही प्रकाश सिंह




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