Juhi Prakash Singh
Juhi Prakash Singh 18 Apr, 2022
अंतर का अंधकार
जब जीने का मक़सद नहीं रह जाता तब आँखों के सामने घोर अंधकार है छा जाता आँखों का अंधकार रिसकर जब फैल जाता अंतर अंदर तो मुँह पर होता है ताला पर अंतर में मच जाता है एक हाहाकार रह जाते हैं तो सिर्फ इस मासूम दिल के टूटे टुकड़े चारों ओर बिखर -©️ जूही प्रकाश सिंह

Paperwiff

by juhiprakashsingh

18 Apr, 2022

# microfables contest

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