मन के अंदर उठे बवंडर को,
इन शब्दों ने ख़ुद में कैद कर लिया,
हम बोले तो बत्तमीज,
न बोले तो गुस्सा,
हम रोये तो कमज़ोर,
न रोये तो सख़्त,
हम उदास नहीं हो सकते,
हमें दूसरों के लिए कंधा बनना है,
हम सुकूँ को कमा कर सब पर लुटा देंगे,
लेकिन ख़ुद पर कभी नहीं,
हम ज़िद करें तो बड़े बना दिए जाते,
और बड़े बनने की कोशिश करें तो,
"बच्चे हो" कह कर चुप करा दिए जाते हैं,
कौन सा काम कब करना है हम ही बताते हैं,
"काम नहीं करता" का ताना सुना दिया जाता है,
मन में वेदनाएं नहीं हो सकती,
क्योंकि उसमें स्त्रियों का हक़ है,
मन की व्यथा नहीं हो सकती,
क्योंकि वो भी औरतों के हिस्से में आता है,
हर सपने को तुम्हारे,
उनके सपने का रोड़ा बनाया जाता है,
पैदा होते ही नौकरी कर लो,
ऐसा दबाव बनाया जाता है,
हर पल कम्पेयर की तलवार तुम्हारे गले से उतारी जाती है,
निकम्मा,
कामचोर,
गंवार,
बेढंगा और न जाने कितनी गालियाँ सुनाई जाती है,
कोई पूछेगा नहीं,
तुम उदास क्यों हो?
कोई पूछेगा नहीं,
तुम गुस्सा क्यों हो?
तुम्हारे नाराजगी को भी तुम्हारी नाकामयाबी से तौला जाएगा,
असफ़लता का दर्पण तुम्हें दिखाया जाएगा,
जिल्लत की चरमसीमा जब सर पर होगी,
आँसू आँख से तब भी बाहर न निकल पायेगा,
और दिल अंदर से रोयेगा,
हो सकता है तुम्हारा दिल आँसुयो से भीग जाएगा,
और शायद दिमाग़ में जीने मरने का ख़याल आये,
लेकिन फिर भी तुम उनके बारे में सोचोगे,
पाल-पोश इतना बड़ा किया,
ख़ुद को इसी बहाने रोकोगे..
और फिर एक नाकाम कोशिश करने में लग जाओगे,
और जैसे ही नाकामी हाँथ लगेगी,
तो शायद तुम हार जाओगे,
और कर लोगे,
वो जो सब चाहते हैं,
सुनाने लगेंगे सब तुम्हारी नाकामयाबी के किस्से,
तब तुम्हारे सपने को कोसा जाएगा,
"पता नहीं क्या कर रहा था"
हर व्यक्ति के सामने टोका जाएगा...
तुम तब भी,
एक पेड़ की भाँति खड़े रहोगे,
अपने आप के दबाए,
बवंडर से डरे रहोगे,
और फिर....
जैसे मैंने इसे शब्दों को सौंप दिया,
तुम भी किसी को सौंप दोगे,
और ख़ुद को शांत रखने की नाकाम कोशिश करोगे,
जब सब कि जीत होगी शायद तुम भी शामिल होगे,
ख़ुद का हार जाने का गम भी तुम छिपा लोगे,
"और भाई कैसे हो?"
"मज़े में हूँ"! इतना कहकर मुस्कुरा दोगे।
हम लड़कें हैं।
हम सबकी सुनेंगे...
लेकिन हमें कोई नहीं....
कोई नहीं सुन सकता...
✍️ गौरव शुक्ला"अतुल"©
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