गुरुवर

जैसे जैसे साल बीतता गया और जब परीक्षा का समय आया तो .... एक छात्र और गुरु की कहानी व कविता

Originally published in hi
Reactions 0
533
Jahaji sandesh
Jahaji sandesh 29 Nov, 2021 | 1 min read

गांव के प्राथमिक विद्यालय में उन दिनों कक्षाओं में मेज कुर्सी नहीं टाट(ज़मीन पर बिछाए जाने वाली एक दरी ) का प्रचलन था ,जिसमें कतार से छात्र व छात्राएं बैठते थे। बात उन दिनों की है जब मैं था तो कक्षा 2 में लेकिन उपस्थिति मेरी कक्षा 3 में दर्ज होती थी...अब आप सोच रहें होंगे वो कैसे? 


वो हुआ यूं कि मेरे बड़े भाई साहब मुझसे कक्षा में एक अधिक थे,तो मैं उन्हीं के साथ बैठना पसन्द करता था ,बस इसी कारण से मैं अपनी कक्षा में कभी नहीं बैठा ,लेकिन जैसे जैसे साल बीतता गया और जब परीक्षा का समय आया तो ....मैं रामायण गुरु जी के हाँथो पकड़ा गया ...और फिर क्या था कुछ तय प्रश्नों के पूछने के बाद साल भर की मार एक साथ एक ही जगह सहनी पड़ी...और दोबारा बैठने में मुझे हफ़्तों लगे।


लेकिन गुरु जी की उस मार ने मुझे सही कक्षा में बैठना सिखा दिया।

जैसे जैसे समय बीतता गया...गुरुजी हर विषय के अनुसार मिलते गए, फिर वो चाहे ज़िन्दगी का विषय हो या फिर हालातो का ,दोस्ती का विषय हो या फिर अटपटे सवालों के लेकिन हर गुरु में एक बात थी...सबनें बस बढ़ना और हालातों से लड़ना सिखाया...ज़िन्दगी के हर मोड़ पर एक गुरु से भेंट हुई ,और हर गुरु से सीखने को मिला।


उपवन की छाया,

जग-जीवन माया,

हर मार्ग का दर्शन...

हे!! गुरुवर बस तुमसे आया....


सही गलत का फ़र्क़ बताया,

बुझदिली छोड़,संघर्ष सिखाया,

मित्र,भाई सब है संचित आपमें,

हर गुरु में बस पिता समाया...

✍️ गौरव शुक्ला"अतुल"

0 likes

Published By

Jahaji sandesh

jahajisandesh

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.