इस बार हम सब जमकर होली खेलेंगे पानी का एक बड़ा पौंड बनवाएंगे फिर उसमें ढेर सारा रंग डाल देंगे फिर जो भी होली खेलने आएगा हम उसे धक्का देकर पौंड में डाल देंगे..! चिंटू ने अपने दोस्तों से कहा...!"
हां हां चिंटू बड़ी अच्छी योजना है चिंटू के दोस्तों की टोली ने खिलखिलाते हुए कहा...!
छत पर खड़ी चिंटू की मां पल्लवी सब कुछ सुन रही थी वो इस तरह पानी को व्यर्थ बहाकर होली खेलने की पक्षधर नहीं थी जैसे ही पल्लवी छत से नीचे आई चिंटू ने कहा मां बहुत तेज प्यास लगी है एक गिलास पानी देना...!
पल्लवी रसोई में गई और आधा भरा पानी का गिलास चिंटू को लाकर दे दिया...!
यह क्या...? इतना कम पानी क्यों दिया मां, मुझे बहुत तेज प्यास लगी हुई है...!
जानती हूं बेटा पर हमें होली खेलने के लिए भी तो पानी बचाना है ना,, तो अब से हमें जितनी प्यास लगेगी हम उसका आधा ही पानी पिएंगे...!
नहीं नहीं मां ऐसा कैसे हो सकता है जितनी प्यास लगती है उतना पानी जरूर पीना चाहिए हमारी टीचर कहती हैं कि हमारा 70% शरीर पानी का बना हुआ है इसीलिए खूब पानी पिया करो और आप कम पानी पीने को कह रही हैं...!
" बेटा मैं पानी कम पीने को इसीलिए कह रही हूं ताकि तुम्हें पानी का महत्व पता लगे और होली के दिन तुम पानी बर्बाद ना करो और सिर्फ गुलाल से होली खेलो तुम्हें पता है रंग से होली खेलने में कितना पानी वेस्ट होता है और दूसरा जब तुम रंग से होली खेल के वापस अपने आपको नहा धोकर साफ करना चाहोगे तब भी तुम्हें ढेर सारा पानी चाहिए होगा अब बताओ इतना सारा पानी कहां से आएगा...!"
"मैं आपकी बात समझ गया मां हम होली गुलाल से खेलेंगे,, रंगों और पानी से नहीं ताकि हम पीने के लिए पानी बचा सकें..."
चिंटू की बात सुन पल्लवी ने उसे अपने गले से लगा लिया।
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