उत्तम स्वास्थ्य जीवन का सबसे बड़ा धन हैं. इसके बिना मनुष्य किसी कार्य को रुचिपूर्ण नही कर सकता हैं. कार्य के प्रति रूचि लगाव के अभाव में अपने जीवन का लक्ष्य पूरा नही कर सकता. उत्तम स्वास्थ्य का अर्थ हैं केवल शारीरिक स्वास्थ्य से सिमित नही इसमे हमारा मानसिक स्वास्थ्य चरित्र और संयम सम्मलित हैं.
जीवन को स्वस्थ और सुंदर बनाने के अनेक साधन हैं. इसके लिए पोष्टिक भोजन के साथ-साथ खेलकूद,व्यायाम आसन, प्राणायाम आदि आवश्यक हैं. शारीरिक और मानसिक थकावट से बचने के लिए मनोरंजन के साधनों की भी जरुरत रहती हैं. स्वस्थ मनोरंजन के अभाव में भी उत्तम स्वास्थ्य दुर्लभ हो जाता हैं.
उत्तम स्वास्थ्य के लिए योगासन अति महत्व हैं. प्राचीन काल में ऋषियों-मुनियों के स्वस्थ और दीर्घायु बने रहने का रहस्य योग ही था. योग सभी उम्र के स्त्री-पुरुषो के लिए उपयोगी होता हैं. इससे न केवल शरीर फुर्तीला होता हैं बल्कि निरोग भी बना रहता हैं. योग के द्वारा मानसिक, बौदिक एवं आध्यात्मिक विकास होता हैं. योग के द्वारा शरीर और मन की परवर्तियो पर भी नियन्त्रण रखा जा सकता हैं. जब कोई व्यक्ति कार्य की नीरसता या परिश्रम की अधिकता के कारण थकान अनुभव करता हैं, तो योग उसे आराम पहुचता हैं. उसकी जड़ता और आलस्य को दूर करता हैं.
योग के द्वारा व्यक्ति के आंतरिक अंगो जैसे ह्रदय, फेफड़े, मस्तिषक,पेट,गुर्दे, रक्तवाहिनियो तथा अनत्स्त्रावी ग्रन्थियो को काफी लाभ पहुचता हैं. शरीर के अन्य अंगो तथा तंत्रों में तालमेल बैठाने के लिए योग तथा आसन की विधियाँ अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई हैं. योग का अर्थ होता हैं-जोड़ना. तन को मन से, शरीर को स्वास्थ्य से जोड़ने की क्रिया का नाम हैं- योग
आसन का अर्थ होता हैं-स्थिर एवं सुखपूर्वक शरीर की स्थति. अत: तन और मन की स्वस्थ,स्थिर एवं सुखपूर्ण स्थति का नाम हैं योग. वैसे तो उत्तम स्वास्थ्य के लिए बहुत से योग और आसनों का विधान हैं. किन्तु विद्यार्थियों के लिए ध्यानात्मक,शारीरिक व्यायाम वाले आसन आवश्यक हैं, जिनमे पद्मासन,वज्रासन,धनुरासन,चक्रासन,कटि चक्रासन,सर्वागासन, हलासन विशेष लाभदायक हैं. इन योग और आसनों के सम्बन्ध में जो जानकारियाँ दी जा रही हैं. उन पर विद्यार्थियों को विशेष ध्यान देना चाहिए.पद्मासन-पद्मासन का अर्थ हैं कमल जैसा आसन अथवा योग. इस योग को करते समय व्यक्ति की बैठक स्थति कमल के समान हो जाती हैं. अत: इस आसन को पद्मासन कहते हैं. इस योग की मुद्रा में दाएं पैर के पंजे को बाएँ जांघ पर और बाएँ पैर के पंजे को दाए जांघ पर रखकर दोनों हाथों को घुटनों पर रखकर, कमर सीधा कर बैठते हैं. इस आसन के अभ्यास से वातरोग, पेट रोग, गठिया, कब्ज आदि रोगों से छुटकारा मिलता हैं. शरीर की सुधड़ता,कांति, दीर्घ यौवन के लिए इस योग का प्रयोग लाभकारी हैं.
वज्रासन-वज्र का अर्थ होता हैं कठोर या सख्त. वज्रासन योग आमाशय,रीढ़ और नाड़ी पर प्रभाव डालने वाला योग हैं. इस योग को करने से शरीर वज्र के समान तन जाता हैं. इस आसन की मुद्रा में अपनी दोनों टांगो को पीछे की ओर मोड़कर घुटनों के बल पाद पृष्ट के उपर रखा जाना चाहिए. इस स्थति में दोनों हाथ घुटनों तथा हथेलिया नीचे की ओर द्रष्टि सामने की ओर स्थिर होनी चाहिए. इस योग को करने से खाया हुआ भोजन जल्दी पचता हैं. यह योग करने से पिंडलियों और घुटनों का दर्द दूर होता हैं. छाती,श्वास तथा गले के रोग दूर होते हैं मोटापा कम होता हैं.इस योग को करने से पेट की चर्बी कम होती हैं. गैस दूर होती हैं, भूख खुलती हैं, आवाज मधुर होती हैं, आँखों की रौशनी बढती हैं तथा पाचन शक्ति भी बढती हैं. इस योग के अभ्यास को 1 से 5 मिनट तक बढाया जा सकता हैं.सर्वागासन- यह योग सभी अंगो को प्रभावित करता हैं. इस कारण इसे सर्वागासन भी कहते हैं. इस आसन में पीठ के बल लेटकर दोनों पैरो को उपर उठाते हुए शरीर का भार कन्धो पर होता हैं. इस स्थति से वापिस आते समय भी अपने पैरो को आगे झुककर, पहले पीठ को भूमि पर लगाए. पैरो सीधा या नीचा लाएँ अन्यथा असावधानीवश गर्दन की हड्डी पर प्रभाव पड सकता हैं. तथा कन्धो की नस भी चढ़ सकती हैं. कुछ सेकंड्स तक करने के पश्तात आराम करे. दुबारा यह योग 2 से 3 बार जरुर करे. इस योग से मस्तिषक के विकार दूर होते हैं. मूत्राशय से सम्बन्धित बीमारियाँ, पैरो और तालूओ की पीड़ा, सूजन तथा जलन इत्यादि दूर होती हैं. मेरुदंड लचीला होता हैं.रक्त परिसंचरण,श्वसनतंत्र लचीला होता हैं. इस योग को नियमित रूप से करने से अंगो के सभी विकार दूर होते हैं.
हलासन-इस आसन में शरीर का आकार हल जैसा बनता हैं. इसलिए इसे हलासन कहते हैं. इस आसन में भूमि पर चित लेटकर दोनों हाथ शरीर से लगाए रखे. दोनों पैरो को एक साथ आसमान की तरफ उठाएँ. फिर पीछे की तरफ झुकाए. पैर बिलकुल सीधे तने हुए रखकर पंजे जमीन पर लगाए. तुड्डी छाती से लगी रहे. अब इसी अवस्था में दो तीन मिनट से आरम्भ होकर 20 मिनट तक की समयावधि बढाई जा सकती हैं. हलासन के अभ्यास से अजीर्ण,कब्ज, अर्श, थायराइड का अल्प विकास, असमय वृद्धत्व,दम, कफा, रक्तविकार आदि दूर होते हैं. इस योग से लीवर अच्छा होता हैं. तथा पेट की चर्बी और सिरदर्द दूर होता हैं.
आसन हर अवस्था के व्यक्तियों के लिए उपयोगी होता हैं. इससे न केवल सभी अंगो को सक्रिय किया जाता हैं, अपितु तन-मन पर भी नियन्त्रण किया जाता हैं. शीर्षासन, सर्वागासन, पद्मासन आदि आसन आसानी से किये जा सकते हैं. इन आसनों को जितनी छोटी उम्र में करना सीख लिया जाएँ,
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