प्रदूषण की मार से हैरान है बच्चे, बूढ़े और जवान,
अब तो वीरान सा हो गया है नीला आसमान,
पक्षियों की चहचहाट से रहता था जो गुंजायमान,
परत दर परत से घुट रहा है अंतरिक्ष का ऑगन,
तंग हो गये हैं तालाबों और नदियों के तट ,
धरा बन गयी है प्लास्टिक और कचरे की खान,
धुंधला गये हैं तारे, सूरज और गगन का चाँद,
दरख्त की दास्ताँ क्या बयां करूं खुद ही बोलने लगा वो
मैं चीखता रह गया तुम अपंग बनाते रहे,
मै सिसकता रहा तुम मुझे पूरा ही नष्ट करते रहे,
पहाड़ों पर बसने की चाह में पहाडों को मिटाते रहे,
अभी से सांसे अटकने लगी है बचपन की
हवा के जहर से ऑखे भी दहकती है बचपन की,
मृत जीवों को नोचते- खसोटते न कौवे- चील- गिद्ध नहीं दिखते,
दूर देश से आने वाले पक्षियों का कारवां अब कम सा होने लगा है,
तालाबों में इठलाती, खिलखिलाती बतखें भी नहीं मिलती है,
सिमट रहा है संसार, जीव- जंतु मौसम और प्रदूषण की मार
कुछ तो रहने दो खुद की पीढी के वास्ते,
खुद के सुख की चाह में क्यों मुझको (प्रकृति) मिटाते जा रहे,
वक्त अब भी सम्हलने का,
चलो गुजरा भूल हवा खुशनुमा बना लें
पीढियों के वास्ते कुछ कदम हम उठा लें,
समां को खिलखिलाने का मौका दे दें।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Very nice 👌👌
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