ताई अक्सा की दाल है? अम्मा(दादी) पूछ रही हैं लगभग साढे 3 या 4 साल का लड़का मेरे बगल में आकर पूछ रहा था कपड़ों में हमेशा की तरह धूल लगी थी, मैंने उसे एक कटोरी दाल देते हुए बोला ले जाओ अम्मा से कहना अब खतम हो गई है।
अक्सा की दाल जो थोड़ी-थोड़ी अरहर की दाल की तरह दिखती जरूर है पर अरहर की दाल होती नहीं है, अक्सा की उपज आसानी से हो जाति है अगर आप उसे खेतों से लाई हुई सीधी देखेंगे तो ऐसा लगता है जैसे कंकड़ है, सस्ती होने के कारण इसका उत्पादन फिर से शुरू हो गया है , इसे खेसारी की दाल भी कहते हैं। इसका उत्पादन 1961 में बंद करवा दिया गया था, सरकार ने सख्त कानून बनाए थे कि इसका उत्पादन ना हो कारण ! यह था कि इसकी वजह से लकवा जैसी बीमारी होने का डर होता है, फिर भी चोरी छुपे लोग इसका उत्पादन भी करते रहे ,अभी जब दाल की कीमत आसमान को छूने लगी है तो इसका उत्पादन लोग फिर से करने लगे हैं, मसूर या गेहूं के बीच में इसके बीज डाल दिए जाते हैं और आसानी से हो जाते हैं। मैं सोच रही थी गांव का जीवन या किसान के जीवन कुछ इसी तरह होता है जो भी खेतों में आसानी से हो रहा होता है उसे ही बना लेते हैं ।
मैंने देखा छोटी-छोटी लड़कियां साल की लड़की खेतों में चली जाती है बथुआ बीनने, बथुआ तोड़ने के लिए कोई भी मना नहीं करता क्योंकि बथुआ कहीं भी आसानी से उग आता है पानी में भी उत्पन्न हो जाता है ,उसको पीस के और लोग सब्जी की तरह बना कर खा लेते हैं गर्मियों में जब निंबौरी होती हैं (नीम का फल)तो बच्चे डलिया ले लेकर घूमते रहते हैं जहां भी निंबौरी होती है वह बीन के लाते हैं ।
एक दिन ऐसे ही मैंने पूछा यह इतनी सारी निंबौरी का क्या करोगी ? बच्चे बताने लगे "ताई हम इसे साफ करके सुखा लेंगे अपनी 8 रुपए किलो " यानी कि उनको हर वक्त किसी ना किसी चीज को बेचने की जुगत लगानी पड़ती है ।
मैं उस दिन बाल रही थी बाल झड़ रहे थे उन बालों के पैरों में दबा रही थी आदतन बचपन से सिखाया गया है कि बालों को इधर उधर नही फेंकते।
तभी एक छोटी बच्ची जिसका नाम सुमना था उन बालों को माँगने लगी क्या करोगी ? मैने कौतूहलवश पूछा!बोली " ताई इसे बेचकर कुरकुरे या थोडा गेहूं ले लेंगे " अब मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा सोचने पर मजबूर हो गयी ये कितनी छोटी चीजों में भी खुशियाँ ढूंढ लेते हैं।
सासू मां ने जो आश्रम बनाया है उसकी पूजा करने एक लड़का आता है, हमने घर में विष्णुकांता का पेड़ लगाया हुआ था मैंने उससे बोला "रामप्रताप इसका बीज लिए जाना अपने घर भी लगा लेना" बोलता है ! "भाभी हमारे घर में पेड़ लगाने की जगह नहीं है अरे हमने कहा "छोटे से गमले में लगा लेना" बोला धूप नहीं आती है भाभी !
सोचिए इतनी मेहनत मशक्कत करने वाले लोग और उनके घरों में सिर्फ इतनी जगह होती है कि वह चारपाई डालकर सो सकते हैं और सवेरे उठकर उस चारपाई को खड़ी कर देते है ताकि घर में घूमने की जगह बन सके।
हां! जो सरकार का कानून है इससे फायदा है उनको जिनके पास जमीन है और अगर वह देना चाहे तो उनकी खेती करने वाले बटाईदारओं को भी उससे फायदा हो सकता है इस कानून से सबसे बड़ा नुकसान है बीच के दलालों को जो अपनी मर्जी मुताबिक अनाज का भंडारण नहीं कर सकेंगे और ना ही ऊंचे दामों में बेच सकेंगे पर पता नहीं 'हर कानून के पीछे कुछ अच्छा ही है और कुछ बुराइयां होती हैं "
खैर हम तो बस सोच सकते हैं पर मेरे मन में एक ही बात रहती है कैसे भी इन किसानों को उनका हक मिलना चाहिए ताकि जो सबका पेट भरते हैं उनका पेट भी भरा जा सके।
इस करोना काल में अगर किसी ने काम नहीं बंद करा तो वह सिर्फ किसान जिसने सबका पेट भरा किसी भी चीज की कमी नहीं हुई सब चीजें बंद थी बस आपके खाने की चीजें नहीं।
अनाज बराबर था, सब्जियां बराबर आती रहीं भले थोड़ी सी महंगी।
हमारे घर के आंगन में एक आम का पेड़ है इस साल हम लोग वही थे तो आम उस में बहुत आए। छोटे-छोटे गिरते थे वह बच्चे उनको भी बीन के ले जाते थे , हम पूछते थे 'इन छोटे-छोटे आम का क्या करोगे बच्चों? यह तो कड़वी लगता है खाने में एक ही जवाब होता था नहीं इसमें नमक मिर्च मिलाकर चटनी बना लेंगे ना तो रोटी अच्छे से खा जाएंगे ।
हर बार सुनकर लगता था एक गरीब किसान हर हाल में खुश है तो हम उनको खुश क्यों नहीं रख पा रहे हैं? क्यों किसान को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ रहा है? क्यों हर बार उसे खाद, बीज के लिए कर्ज लेना पड़ता है ?क्यों डीजल इतना महंगा होता जा रहा है ? पता नही इस क्यों का कोई हल निकल पायेगा या नही!
किसान की थाली में कब नमक मिर्च की जगह साग, दाल और भाजी भरेगी।
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