तो क्या सोचा आपने दिव्या जी "?
"मेरा ज़वाब आज भी वही है सर ! माफ़ी चाहूंगी मुझे अब जाना होगा "| इतना कह दिव्या ने अपने हाथों में पकड़ी फ़ाइल को जोरो से भींच कर सीने से लगा लिया और तेज़ क़दमों से आशीष सर के केबिन से निकल गई |
साधारण सलवार सूट, लम्बे बालों की चोटी और माथे की छोटी सी बिंदिया इतने साधारण भेष में भी दिव्या बेहद खूबसूरत लगती | पहली नज़र में ही ऑफिस में आये नये बॉस आशीष मेहरा की नज़रो को भा गई थी दिव्या |
इतनी खूबसूरत लड़की और चेहरे पे ये उदासी कैसी? इस उम्र की लड़कियाँ तो हिरणी सी चंचल होती है | ऑफिस में अपने काम से काम रखती दिव्या सिर्फ एक सहेली थी निशा जिससे बातें कर अपने दिल का बोझ हल्का कर लेती दिव्या |
एक दिन बातों बातों में आशीष को पता चल ही गया दिव्या के सुन्दर चेहरे पे छाई उदासी का राज, अब तक तो दिव्या सिर्फ आशीष के मन पे छाई थी लेकिन उसकी सच्चाई जान दिल में बस गई थी दिव्या | साथ ही आशीष के आँखों में दिव्या को अपनी अर्धांगिनी बनाने के ख्वाब भी पलने लगे |
मौका देख आशीष ने अपने दिल की बात बेझिझक दिव्या से कह दी, " दिव्या जी मैं आपसे शादी करना चाहता हूँ "|
अपलक दिव्या अपने बॉस को देखने लगी | अचानक आये इस विवाह प्रस्ताव से घबरा सी उठी दिव्या और नाराज़ भी |
"माफ़ कीजियेगा सर, आप मेरे बॉस है इसका मतलब ये नहीं की आप कुछ भी प्रस्ताव मेरे सामने रख देंगे" |
"
लेकिन क्यों दिव्या जी कमी क्या है मुझमें, अच्छा कमाता हूँ देखने में ठीक ठाक हूँ फॅमिली अच्छी है और सबसे बड़ी बात आप मुझे पसंद है और क्या चाहिये शादी के लिये " |
"और मेरी मर्जी मिस्टर आशीष मेहरा"?
"बिलकुल दिव्या जी तभी तो पूछ रहा हूँ आपसे "|
"ये संभव नहीं है" |
"लेकिन क्यों"?
"क्यूंकि मैं किसी की बेवा हूँ समझें मिस्टर आशीष किसी की विधवा हूँ मैं | मेरे लिये ऐसा सोचना भी पाप है शादी करना तो बहुत दूर की बात है | मैं अपने पति के प्रेम के साथ विश्वासघात नहीं कर सकती "|
निशब्द खड़ा रह गया आशीष और रोते हुए भाग गई दिव्या |
आज भी आशीष ने दुबारा अपना प्रस्ताव रखा था दिव्या के सामने जिसे दिव्या ने मना कर दिया था | ऑटो में बैठी दिव्या अतीत की गलियों में भटकने लगी थी |
नितिन की दुल्हन बन कितनी ख़ुश थी दिव्या | दोनों एक दूसरे के प्रेम में आकंठ डूबे रहते | नितिन अपने माता पिता की इकलौते बेटे थे | सास ससुर ने कभी भी दिव्या को बहु समझा ही नहीं ना दिव्या ने उन्हें सास ससुर समझा | हँसी ख़ुशी से दिन बीत रहे थे की नितिन एक एक्सीडेंट में चल बसे मात्र एक साल की शादी और बाईस साल की उम्र दिव्या की जिंदगी एक झटके में बदल गई |
जाने कितने दिन कितनी राते नितिन की याद में पागलो सा रोती रहती दिव्या को देख नितिन के माता पिता ने अपना दुःख भुला दिया और बहुत मुश्किल से दिव्या को संभाला |
अपनी क़सम से नितिन के पापा ने दिव्या को ये नौकरी जान पहचान से दिलवा दी जिससे उसका मन बदल सके | दिव्या धीरे धीरे सामान्य तो हो गई लेकिन एक खामोशी की चादर में खुद को ढंक लिया था दिव्या ने |
नितिन के मम्मी पापा भी चाहते की दिव्या का घर बस जाये बहुत प्रयास करते दिव्या को मनाने का लेकिन सब प्रयत्न बेकार थे |
रात को बिस्तर पे करवटें बदलती दिव्या के कानो में सिर्फ आशीष की बातें गूंज रही थी बेचैन सी हो उठी दिव्या | क्यों आखिर क्यों मुझे आशीष की बातें याद आ रही है | जाने क्यों मन का एक सिरा आशीष की तरफ भागा जा रहा है? जाने क्यों आशीष का साथ कहीं ना कहीं उसे भाने लगा था लेकिन दिव्या भाग रही थी इस सच्चाई से | " नहीं नहीं ऐसा नहीं सोच सकती मैं ये पाप है विश्वासघात है नितिन के प्रेम के साथ लेकिन मैं इस मन का क्या करू जो मेरी सुनता ही नहीं अब |
जब रहा नहीं गया दिव्या से तो निशा को फ़ोन लगा सारी बातें बता दी दिव्या ने और रोते रोते पूछा, "" तू ही बता निशा मैं क्या करू ऑफिस में आशीष सर और घर पे मम्मीजी और पापाजी सब मेरे पीछे ही पड़ गए है शादी करने को, बता मैं क्या करू कभी कभी जी करता है सब छोड़ कहीं भाग जाऊ" |
"दिव्या सब ठीक ही तो कहते है उम्र देखी है अपनी मात्र चौबीस की हो पूरी जिंदगी क्या यादों के सहारे काटा जा सकता है बता मुझे | नितिन का बस साल भर का ही साथ था दिव्या उन खूबसूरत यादों को दिल में छुपा अब नये जीवन पथ पे चलने का समय आ गया है दिव्या मेरी बातों पे गौर करना " |
सारी रात दिव्या के कानो में नेहा और आशीष की बातें गूंजती रही |
अगले संडे सुबह से मम्मीजी और पापाजी व्यस्त दिख रहे थे | "आज कोई आने वाला है क्या मम्मी"?
"हाँ बेटा शाम को कुछ लोग आ रहे है तुम भी अच्छे से तैयार हो जाना "|
शाम को आशीष और उसके परिवार को दरवाजे पे देख दिव्या चौंक उठी अंदर आ अपनी सास से पूछने लगी, "मम्मी इन लोगो को किसने बुलाया यहाँ "?
"हमने बुलाया है बेटा", पापाजी ने ज़वाब दिया |
"लेकिन क्यों पापाजी ? मुझे नहीं करनी शादी | मुझे तो आप दोनों की सेवा करनी है | नितिन के बाद आप दोनों मेरी जिम्मेदारी है और दूसरी शादी ऐसा सोचना भी मेरे लिये पाप है |
"क्यों पाप है दिव्या"? मम्मी ने कहा |
"नितिन के साथ जितने पल थे वो तुमने जी लिये है और ये भी सच है की जाने वाले के साथ जिंदगी ख़त्म नहीं होती | हम दोनों बूढ़े हो रहे है और हम दोनों के बाद तुम्हारी जिंदगी कैसे कटेगी बेटा? और आशीष जैसा लड़का रोज़ नहीं मिलता |
"लेकिन मम्मी ! ये तो पाप होगा मैंने तो सिर्फ नितिन को ही अपने मन में बसाया था " |
"बिलकुल नहीं दिव्या दूसरी शादी पाप नहीं होती बल्कि जिंदगी का दिया एक और सुनहरा मौका होता है जिसे ख़ुशी से स्वीकार करना चाहिये "|
मम्मी पापाजी ने दिव्या को प्यार से समझाया जिसे सुन दिव्या के दिल का बोझ जैसे कम सा हो गया मन के जिस कोने में वो आशीष के तरफ एक झुकाव महसूस कर रही थी और जिसके लिये खुद को अपराधी महसूस कर रही थी वो कोई पाप नहीं था एक पवित्र प्रेम की अनुभूति थी | दिव्या ने नई जिंदगी को एक और सुनहरा मौका दे दिया था और जल्दी ही शुभ मुहर्त देख दिव्या और आशीष विवाह के पवित्र बंधन में बंध एक हो गए |
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