पिता सघंर्षो का वो मोती
जो न कभी थके
न कभी रूके
चलता ही रहे निरन्तर
पूरी करने को.. ख्वाहिशें
लगा रहे दिन रात
इस उधेड़बुन में कि
कैसे पूरा करे सबके सपने
संजोये है सबने ,जो अपनी आँखों में....
दिन रात जो चूर कर दे खुद को ताकि
होठों पर बनी रहे मुस्कान सभी के
कुरबान कुछ इस कदर करे वो अपना जीना
कि तय करे जीवन की हर कसौटी
पिता सघंर्षो का है वो मोती
त्याग कर अपना सुख
उड़ेल दे सबके जीवन में
आत्मविश्वास, बने सबकी प्रेरणा,
अवर्णीय पिता का हर त्याग
पिता का हृदय विशाल
एकता कोचर रेलन
Comments
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खूबसूरत कविता
शुक्रिया संदीप जी 🙏
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