बुजुर्ग घर की शोभा

इन्हें कुछ ना चाहिए,बस प्रेम ही की आस है प्रेम में ही बंधें रहे ,प्रेम ही इनके श्वास है

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Ektakocharrelan
Ektakocharrelan 03 Feb, 2021 | 1 min read
#1000poems

बुजुर्ग घर की शोभा ,बरगद की ये छांव है

 इनसा ना कोई जग में, खुशियों की ये ठाँव है


इन्हें कुछ ना चाहिए,बस प्रेम ही की आस है

प्रेम में ही बंधें रहे ,प्रेम ही इनके श्वास है

इनकी जो समझ सकें तो ये ही चारों धाम है

 इनकी जो दुआएं लगे तो मिले ऐश्र्वर्य धाम है


बुज़ुर्ग से जो स्नेह रखो ये ही घर की जान है

इनसा ना कोई जग में ये ही घर का मान है


झुरियां जब आने लगे बुढ़ापा घेरे सब को सदा

उम्र जब ढलने लगे निढाल हो जाएं सब सदा

समझ ले ये खेल जो!! है क्षणभंगुर जीवन सदा

इनके स्नेह को जब समझ ले वो घर चहके सदा


 बुजुर्ग को दिल से मान दे, मान दे सत्कार दे

इनकी आशीष लेकर अपने बच्चों को संस्कार दे


एकता कोचर रेलन



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