कहीं सूखा- कहीं बाढ़
ऐ मनुज देख सुन ना तू !सब्र कर तू!
किंचित ठहर जरा संभल ना तू !
जीवन कठपुतली बना मत खेल तू,
ईश ने फूंके तुझ में प्राण सुन!
इतना इस कदर मत मचल तू।
#कहीं सूखा!कहीं बाढ़!
अब तो सुधर तू!!
देख कर ईश का रौद्र रूप ,
हां क्या कहा- अभी भी चिंतित नहीं तू?
खुद से ही अब प्रश्न कर तू कि -
प्रकृति पर छाया कहर आँखें खोल तू,
कोई पानी को तरसे,कोई पानी में बहे-
देख मनुज !अब तो संभल तू,
अपनी सफलता का ना गुमान कर तू।
खुद से ही अब प्रश्न कर तू,
#कहीं सूखा!कहीं बाढ़!
अब तो सुधर तू!!
एकता कोचर रेलन
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