माथे पर चमकता सिंदूर सुहाग की निशानी है प्रेम के एहसास का,हर नारी के विश्वास का। प्यार व आदर है तो सिंदूर हर स्त्री के लिए गौरव बन जाता है।पति के प्यार को हर सुहागन अपने माथे पर सजाती है और उसके लिए कुछ भी कर जाती है।
ये ना केवल उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाता है
बल्कि उसकी शक्ति बन जाता है ।पति का प्यार , विश्वास उसके लिए प्रेरणा बन जाता है
हर औरत सुहाग की सलामती की कामना करती है।
पर अगर प्रेम की भावना ही नहीं तो सिंदूर सिर्फ रंग बन कर रह जाता है। वह असहनीय हो जाता है। कुछ ऐसे ही भाव लिए हैं मेरी ये कविता
सिंदूर
मेरी मांग में वो सजता है
मेरे श्रृंगार में वो जंचता है
लगता नहीं किंचित भी बोझ मुझे
मेरी प्रीत में चार चाँद भरता है
भर इसे मांग में सुकून सा पाती हूँ
कितने भी दूर रहे साजन
माथे का ताज बना पाती हूँ
जीवन सफ़र पर संग है हरदम
वो मुझमें मैं उनमें हरदम
मान-सम्मान एक दूजे का साथ है
चाहत व,अपनेपन के रंग से रिशतें ये खास है
सिंदूर हर औरत का अभिमान है
मान है माथे का सरताज है।
सुखद अनुभूति है,गौरव है
प्रतीक है चाहत का,अपनेपन का
जब तक जुड़ा रहे प्रीत के धागे से
जब तक जुड़ी रहीं आशाएं
बना रहे मान-सम्मान एक दूजे के लिए
सिंदूर औरत का अभिमान है
मान है माथे का ताज है।
सुखद अनुभूति है,गौरव है नारी के लिए
उज्जवल सा है पवित्रता की चमक लिए
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अर्थहीन सा जान पड़ता है तब
सिंदूर बनता बोझ तब !!
जब रिश्ते की डोरी पड़ने लगी है ढीली
खत्म सा हो जाता है विश्वास
रहता नहीं एक दूजे के लिए मान -सम्मान
बोझ सा लगता है दोनों के लिए
फीकी पड़ने लगती है चमक
और टूट जाती है बन्धनों की रीत
एकता कोचर रेलन
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