अनमोल सितारा
सुरभि बचपन से ही दिव्यांग और पढ़ाई में कमजोर थी। प्रभु की मर्जी के आगे भला किसका जोर चल सकता था। विनय सुरभि का छोटा भाई था।
"बडा ही समझदार"
मम्मी पापा ने दोनों बच्चों की परवरिश समान रूप से की थी। जो भी चीज़ आती दोनों के लिए बराबर आती थी।
विनय कान्वेंट स्कूल में पडता था। हर काम में सबसे आगे। टीचर उसकी तारीफ करते नहीं थकते थे। पर जब भी बहन को देखता मायूस हो जाता!
एक दिन बहन के साथ खेल रहा था। विनय को बातों ही बातों में सुरभि ने मेडल जीतने की इच्छा जाहिर की। विनय ने मन ही मन निश्चय किया कि इस बार वो मेडल अपनी बहन के साथ शेयर करेगा। और दोनों गीत गुनगुनाने लगे-
* फूलों का तारों का सबका कहना है एक हजारों में मेंरी बहना है।
कुछ दिन बाद जब वर्षिकोत्सव था तब विनय ने न केवल पडाई में बल्कि योगा, डांस आदि अलग-अलग दस मेडल जीते। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।
घर आते ही सबसे पहले पांच मेडल बहन के गले में व पांच अपने गले में पहने। बहन खुशी से झूम रही थी।
दूसरे दिन भी सुरभि वहीं मेडल पहन कर मैदान में घूम रही थी। तभी विनय के दोस्त भी वहां मैदान में आ गए। सब दोस्त सुरभि का मजाक उड़ाने लगे कि देखो-देखो सुरभि मेडल पहन के घूम रही है यह भला मेडल कैसे जीतेगी।
* हां!!-हां!!
लूजर !लूजर !लूजर!
ये बेचारी तो अपूर्ण है !दिव्यांग जो ठहरी!
ये तो कुछ याद ही नहीं रख पाती। ये भला मैडल कैसे लाएगी। और सब जोर-जोर से हँसने लगे।
सुरभि तेजी से भागते घर पंहुची।और उसकी स्पीड इतनी तेज थी कि विनय उसकी पहुँच तक ना पहुँच पा रहा था। उसके भागने की गति इतनी तेज थी कि सामने से आते हुए साइकिल पर कुछ बच्चों से उसकी टक्कर हो गई। और वह दूसरी और जा गिरी। इतने में विनय पीछे से आवाज लगा रहा था। सुरभि उठी और फिर तेजी से घर की ओर भागने लगी।
भागते-भागते घर पहुंची और अंधेरे में जाकर बैठ गई कमरे से बाहर से आते हुए प्रकाश से दीवार पर उसके हाथों से बनाई कलाकृतियां साफ़ नज़र आ रही थी।
उसने पहले बनाया कि
उसे बहुत दुख हुआ !
उसके भैया बहुत प्यारे हैं!
वह भी कुछ करना चाहती है!
ऐसा करते-करते सुरभि सो चुकी थी पर विनय के दिमागी घोड़े अपनी दौड़ लगाना शुरू कर चुके थे उसे कुछ- कुछ अंधेरे में साफ दिखने लगा था बहन के भविष्य के लिए
विनय आसमानी सितारों में बहन के लिए चमकता सितारा ढूंढने में लगा था।
सुबह नाश्ते की टेबल पर जैसे ही पहुंचा सामने अखबार की ख़बर पढ़ते ही उसका मन खुशी से झूम उठा। उसे आसमानी सितारा मिल गया था। इसी महीने की 30 तारीख को रेस प्रतियोगिता जो थी। और साथ ही बस टैलेंट का कंपटीशन।कल शाम को ही सुरभि ने उससे आगे निकल कर यह दिखा दिया था कि कोई भी उससे जीत नहीं सकता।
उसने अपनी बहन के साथ रोज प्रैक्टिस करने की ठान ली।
उसने सभी दोस्तों को भी इसमें भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया।
खाना खाने के बाद वह बहन के साथ बेस्ट टैलेंट के लिए प्रैक्टिस करता। जिसमें विनय कहानी सुनाता और सुरभि अपने हाथों से कहानी की कलाकृतियां बना रही थी। विनय को सुरभि को सिखाने में बहुत मेहनत लग रही थी। पर उसे तो अपनी बहन की सफलता चाहिए थी।
शाम को वे दोनों रेस की प्रैक्टिस किया करते ।सब बच्चे पीछे चिल्लाते रहते हा !-हा! अब यह लूजर रेस जीतेगी!
विनय ने सुरभि को दूसरे मैदान में ले जाकर प्रैक्टिस कराना शुरू कर दी। ताकि उसका मनोबल कम ना हो।
विनय दिन- रात अपनी बहन को प्रोत्साहित करता।
बस फिर क्या था 30 तारीख आ गई थी। दोनों ने खूब मेहनत की ।
आखिर वह दिन आ गया जब प्रतियोगिता थी।
विनय पूरे परिवार के साथ प्रतियोगिता में पहुँच गया।
सुरभि के" हाथ -पैर "ठंडे पड़ गए। उसे लगा वह परीक्षा की तरह यहां भी कुछ नहीं कर पाएंगी । विनय ने सुरभि को तिलक लगाया और उसके हाथ पर धागा बांधा और इशारा किया कि मैं तुम्हारे साथ हूँ।
यह क्या जैसे ही दौड़ शुरू हुई तीन बोलते ही सुरभि इतनी तेजी से भागी कि उसने गंतव्य स्थान तक पहुँच कर ही दम लिया।
सारा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
फिर शुरू हुई कहानी प्रतियोगिता-- जिसमें सुरभि ने अंधेरे में काले परदे पर दिव्यांग बच्चों की सफलताओं पर प्रकाश डाला ।
*कि वह भी अपूर्ण नहीं है! पूर्ण है!
सबसे पहले उन बड़े-बड़े दिव्यांग लोगों को दिखाया गया जो समाज के लिए प्रेरणा का काम कर रहे थे।
पहली थी हेलन केलर की तस्वीर बनाई जो बहरी और अंधी होने के बावजूद प्रसिद्ध लेखक बनी।
फिर उसने स्टीफिन हांकिंग प्रसिद्ध वैज्ञानिक की तस्वीर को अपनी उंगलियों से उकेरा जिसे आइंस्टाइन अवार्ड मिला।
फिर बारी आई निकोलस जेम्स की कहानी की हाथ पैर नहीं होने के बावजूद मोटिवेशनल स्पीकर बने।
डॉक्टर सुरेश आडवाणी पोलियो के बाद भी कैंसर स्पेशलिस्ट बने जिन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
अंत में सुरभि ने उंगलियों के इशारों से ही बताया कि वह दिव्यांग जरूर है पर अयोग्य नहीं वह योग्य बनना चाहती है।
हम बच्चे भी प्यार की चाह रखते है!
प्यार व उत्साह बढने पर हमारे जीवन को एक मजबूत दिशा और हौसला मिलता है। हमें दयनीय दृष्टि से न देख कर हमारा हौसला बड़ाये।
न आँको किसी से कम हमको
हम भी प्यार चाहते है!
रिश्ता ये बराबरी का है
हम बस सम्मान चाहते है!
घृणा से न देखों हमारे भी जज्बात होते है!
कुछ बडे़ हो न हो पर ख्वाब पाक होते है!
कभी न दिल दुखाते किसी का
खुदा के रुप में भेजें हम भी इन्सान होते है।
पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा क्योंकि सभी बच्चों की कहानी में सुरभि की कहानी बेस्ट थी
और विनय के दोस्त अपनी गलती के लिए आँखें झुकाए खड़े थे।
सुरभि को मैडल जैसे ही पहनाया गया बिनय ने बहन को गले लगा लिया।
मम्मी, पापा और पूरा होल विनय और सुरभि के प्यार को देख खुशी के आँसू बहाने से खुद को न रोक पाए। क्यूंकि ये रिश्ता मुस्कान का था। रिश्ता भाई- बहन के प्यार का था।
सुरभि सबके बीच अनमोल सितारा बन चुकी थी।
तो दोस्तों बताइयेगा जरूर कैसी लगी आपको मेरी कहानी। एकता कोचर रेलन
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