रचना चोरी
अल्फाजों को समेट लेता है,
ये मन भावों को पिरों लेता है।
समझता है साथी सगा अपना-
वरना इस दौर में कौन समझता है ।
माना सब कुछ ब्यां कर नहीं सकते ,
पर हर दर्द दिल में रख नहीं सकते ।
कलम में वो ताकत होती है -
ताकत को कम आंक नहीं सकते ।
पर आज देखो न कौन सा दौर आया है ,
रचना चोरी का जमाना आया है।
जाने कैसे रचते वे साजिश -
जाने मन को कैसे चैन आया है।
भावों को गीतो में पिरों नहीं सकते,
मेहनत के दम पर जो बढ़ नहीं सकते।
जो टकटकी दूसरों पर लगाए हैं -
मेरा दावा है कि वह आगे बढ़ नहीं सकते।
एकता कोचर रेलन
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