आंखें
बहुत कुछ कहती है,मेरीआंखें
उडेल देती है अन्तः मन की व्यथा
अपने नयनों के झरोखे से
मूक रहकर भी सब कहती है मेरीआंखें
इधर-उधर देख अठखेलियाँ करती है
खो जाती है कभी अपने बीते पलों में
कभी कुछ कहती है
कभी कुछ सहती है़ मेरी आंखें
बुनने लगती है ख्वाब नित नये
दूर तक कुहासे को बेंधती हुई
कभी मुंडेर पर
कभी दरिया पार हो आती है मेरी आंखें
खामोश तन्हाईयों में यादों के थपेड़े पीड़ा देते है मुझे
तो हर अश्क कागज़ पर कलम बन
कविता के रूप में उभरता है तभी
आशा का दीप जलाती हैतभी
मेरी आंखें
बहुत कुछ कहती है मेंरी आंखें
एकता कोचर रेलन
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