विधा- पद्य
चल मेरे हमराही
मिलकर सपनों को फिर बुन ले।
भुला दे दर्द सारे दिल के❤
चलो गम को कुछ कम कर ले
बिन कुछ, बिन कुछ सुनें
महसूस एक दूजे को कर ले
अंखियों के झरोखों से
चांद 🌙तक की उड़ान भर ले
हां तू पूर्व तो मैं पश्चिम
तू उत्तर तो मैं दक्षिण
चलो न अब दूरियां कुछ
कम कर ले
सृष्टि -कर्ता ने रच डाला जन्म भर का साथ हमारा
धरा से आसमां तक दूरी तय कर ले
चल मेरे हमराही
मिलकर सपनों को फिर बुन ले।
एकता कोचर रेलन
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