सपने देखना किसे अच्छा नहीं लगता पर ये सपने जब हम लड़कियों से जुड़े होते हैं तो कौन जाने बचपन से भरे आँखों में ख्वाब कब पूरे हो जाएं और कब ये सपने विलीन हो जाते है वक्त की रंग बिरंगी धूप में
कुछ ऐसे ही भावों को पिरोया मैंने अपनी कविता में आप भी पढ़िए और शेयर कीजिए अपने सपनों को कमेन्ट बॉक्स में
सपने
अकेले बैठ कर नित नये सपने बुनती है
सपनों का मोल नहीं फिर भी नयी राहें चुनती हैं
हाँ जानती है फिर भी !!
ये लड़कियां जाने क्यूं नित ख्वाब बुनती है
ये सपने हाँ !कभी किसी को यूँ ही नहीं मिलते
दर्द हर सहती और सफ़र में हमराही चुनती हैं
हाँ जानती है फिर भी !!
ये लड़कियां जाने क्यूं नित ख्वाब बुनती है
ये मशरूफ हो खुद को अक्सर भूल जाती हैं
कभी फुर्सत में मोती ख्वाब के चुनती हैं
हाँ जानती है फिर भी !!
ये लड़कियां जाने क्यूं नित ख्वाब बुनती है
सपने सब के नयनों में पलते जागीर होते हैं
समझो तो सबके ख्वाबों की ताबीर बनते हैं
हाँ जानती है फिर भी !!
ये लड़कियां जाने क्यूं नित ख्वाब बुनती है
रोजमर्रा की ख्वाईशो में खुद से खुद को दूर करती
दर्द में अक्सर रहती मेहनत से खुद को चूर करती हैं
हाँ जानती है फिर भी !!
ये लड़कियां जाने क्यूं नित ख्वाब बुनती है
गिला किसी से कभी इस के लिए नहीं कर सकती
ख्वाब अक्सर इनके दिल से जुड़ी तस्वीर होते हैं
हाँ जानती है फिर भी !!
ये लड़कियां जाने क्यूं नित ख्वाब बुनती है
ताकत रखती है लकीरों को बदलने की बेशक
शिद्दत से करती खुद को कुर्बा सबके सपने पूरे करती हैं
हाँ जानती है फिर भी !!
ये लड़कियां जाने क्यूं नित ख्वाब बुनती है
अपनी ख्वाइशों को पीछे छोड़ आती है
खुद को झंझोर कर सबको उजाला दिखाती है
हाँ जानती है फिर भी !!
ये लड़कियां जाने क्यूं नित ख्वाब बुनती है
एकता कोचर रेलन
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