#कान्हा #जन्माष्टमी #बंसी #प्रेम #मक्खन #मिश्री
ओ मेरे कान्हा!
ओ मेरे कान्हा! #जन्माष्टमी पर्व पर,
तू सुन हर उस मन की पुकार।
जिस अँगना न गूँजी ,
तेरे पायल की झंकार।
तू आ! नन्हें- नन्हें कदमों से ,
बजा पायल की झंकार।
रुनझुन -रुनझुन खनका कर ,
भिगो दो हर वो घर आँगन।
जहाँ सुनाई ना दी तेरी किलकार,
मातृत्व का सुख दे जाओ एक बार!!
ओ मेरे कान्हा! तू सुन,
हर उस मन की पुकार।
माखन- मिश्री का भोग लगाऊँ,
मटकी फोड़ जाओ इक बार ।
सुनाओ अपनी किलकारियां आओ न इक बार।
ओ मेरे कान्हा !सुनो प्रेम की पुकार ।
जो मन सूने तेरे दर्शन बिन,
दिखा कर अपने लीलाएं ।
तृप्त करो ह्रदय को!
बंसी बजाओ एक बार।
ओ मेरे कान्हा!
करो दुष्टों का संहार।
गीता का फिर पाठ पढ़ा,
करो ना कोई चमत्कार।
फिर बहा दो प्रेम की रसधार।
हर मन पावन कर दो इक बार।
ओ मेरे कान्हा! तू सुन,आ ज़रा!
जी भर नज़र उतार लूं इक बार।
एकता कोचर रेलन
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