ओ मेरे कान्हा!

ओ मेरे कान्हा! ओ मेरे कान्हा! #जन्माष्टमी पर्व पर, तू सुन हर उस मन की पुकार। जिस अँगना न गूंजी , तेरे पायल की झंकार। तू आ! नन्ने- नन्ने कदमों से , बजा पायल की झंकार।

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Ektakocharrelan
Ektakocharrelan 11 Aug, 2020 | 1 min read

#कान्हा #जन्माष्टमी #बंसी #प्रेम #मक्खन #मिश्री


ओ मेरे कान्हा!


ओ मेरे कान्हा! #जन्माष्टमी पर्व पर,

 तू सुन हर उस मन की पुकार।


 जिस अँगना न गूँजी ,

तेरे पायल की झंकार।


 तू आ! नन्हें- नन्हें कदमों से ,

बजा पायल की झंकार।


रुनझुन -रुनझुन खनका कर ,

भिगो दो हर वो घर आँगन।


जहाँ सुनाई ना दी तेरी किलकार,

मातृत्व का सुख दे जाओ एक बार!!


ओ मेरे कान्हा! तू सुन,

 हर उस मन की पुकार।


माखन- मिश्री का भोग लगाऊँ,

 मटकी फोड़ जाओ इक बार ।


सुनाओ अपनी किलकारियां आओ न इक बार।

ओ मेरे कान्हा !सुनो प्रेम की पुकार ।


जो मन सूने तेरे दर्शन बिन,

दिखा कर अपने लीलाएं ।


तृप्त करो ह्रदय को!

 बंसी बजाओ एक बार।


ओ मेरे कान्हा!

 करो दुष्टों का संहार।


 गीता का फिर पाठ पढ़ा,

करो ना कोई चमत्कार।


फिर बहा दो प्रेम की रसधार।

हर मन पावन कर दो इक बार।


ओ मेरे कान्हा! तू सुन,आ ज़रा!

जी भर नज़र उतार लूं इक बार।


एकता कोचर रेलन

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