रेत सी फिसलती जा रही ये जिंदगी!!

रेत सी फिसलती जा रही ये जिंदगी

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Ektakocharrelan
Ektakocharrelan 25 Feb, 2021 | 1 min read
#1000 poems

रेत सी फिसलती जा रही ये जिंदगी,

कभी धूप, कभी छांव दिखा रही जिंदगी।


लौट के ना आएगा बीता वो कल यकीनन ,

जाने क्यूं फिर भी इतराती जा रही जिंदगी।


चाहते हैं सब संपूर्ण होने की कोशिश,

 नियति का लिखा कब मिटा सकी ये जिंदगी।।


रह जाएगा मुट्ठी भर ही रेत "अंत में जीवन",

हर पल घरोंदे मत सजा तू ऐ जिंदगी!


पंछी उड़ते मस्त गगन में एकता रख चाह जरूरत की,

समय की रेत संग चल "कर नवसृजन ऐ जिंदगी"।।

एकता कोचर रेलन

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Ektakocharrelan

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