नेट में उलझा बचपन
जिंदगी कैसी हो गई हाँ यारों,
बचपन की छवि धूमिल हो गई प्यारों।
घूम रहें सब नेट की चकाचौंध में,
संस्कार गुम हो रहे यंत्रों के शोर में।
एक छत पर अफरा -तफरी सी मची है,
पास-पास बैठे चाहे फुर्सत ना मिली है।
रेसिपी विधि पूछे माँ पर बना ना पाएं,
पिता कहां व्यस्त हैं समझ ना आए।
खेल की उम्र में बच्चे लगे मोबाइल में,
हनुमानचालीसा खो गई नेट ध्यान में।
राजा -वजीर की गेम ये ना जाने,
छुपन -छुपाई की कीमत ना पहचाने।
नज़र टिकी पबजी पर स्कोर कैसे बनाएं,
दादा-दादी न दिखते संस्कार कौन लाएं।
क्या? परिवार फेसबुक,इंस्टा हो गया,
जीवन मूल्यों का अर्थ जानें कहां खो गया??
एकता कोचर रेलन
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
वाह
Shukriya Sandeep bhi🙏 सस्नेह आभार 🌺🙏
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