हमारी नादानियों को बेहतर समझते हैं ,
पिता, माता, दोस्त कभी गुरु बनते हैं ।
अपने हर सुख का करके त्याग-
हाँ! मार्गदर्शक बनते हैं ।
रखकर दूरदृष्टि भविष्य को संवार देते हैं,
हम से भी ज्यादा हमारी पहचान रखते हैं।
हमारे बेहतर कल की खातिर ही-
गढकर हमें हमारे कुंभकार बनते हैं ।
उनके जैसे ना दुनिया में हमदर्द पाते हैं,
आड़े-तिरछे अक्षर को सीधा सिखाते हैं।
अंधेरे में भी दिखाते प्रकाश-
गुरु वह दिव्य ज्योति जो जड़ को चेतन बनाते हैं
नमन ऐसे गुरुओं को जो ईश बन जाते हैं
बदल कर लकीरें सच्चे मीत बन जाते हैं।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.