दहलीज का सफ़र
माँ की देहरी को पार करके ,
अँखियों में सागर भर के।
अक्षत चंदन से लबों पर लाती कामना,
कि सुखी रहे उसका बाबुल का अंगना।
भर के नैनों में अटूट प्यार,
सात फेरें, सात वचन का साथ।
कुशल कामना कर के लाड़ो,
चली छोड़ कहे! बाबुल तुम याद रखना।
हिना के रंग की रंगत लेकर,
संग किया है सोलह श्रृंगार ,
पग रखती नयी चौखट पर-
सब कहे यही पूरा होगा हर सपना।
कलश को पांव से गिरा कर,
द्वार पर स्वस्तिक बनाकर।
मन में नये ख्वाब सजा कर-
कहे बनूं तेरे दिल का हार मैं सजना।
मिलकर चलेंगे जीवन डगर पर,
ना रखेंगे कौई मन में तकरार।
ज्यादा की दरकार नहीं मुझको-
सफ़र में साथ मिल बनायेंगे आशियाना।
मज़बूर न करना लांघूं कभी चौखट,
माँ-बाबा ने बांधा पल्लू संग आशीर्वाद।
कि न झुकने दूंगी कभी सर उनका
चौखट से जाऊं जब रंग होगा फीका पड़ना।
एकता कोचर रेलन
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Beautifully penned
Shukriya shah talib ji🌺🌺
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