दर्पण सा दिखते थे यह चैनल आज छवि अपनी खों रहे,
अपनी टीआरपी के चक्कर में खबरों का स्तर छोड़ रहे।
कितना मसाला कहाँ लगाएं खबर को अच्छी कैसे बनाएं,
अपने चैनल को सर्वोतम दिखाकर चारों ओर धूम मचाए।
निष्पक्षता को प्रतिदिन खो रहे जगाने वाले चैन से सो रहे,
इनके चक्कर में दूरदर्शन जैसे मुख्य चैनल भी धूमिल हो रहे।
साथ बैठकर कभी मिल दूरदर्शन पर प्रोग्राम देखा करते थे,
अख़बारों के हर पेज को बांट कर सब पढ़ लिया करते थे।
अब वो खबर ना स्वाद रहा दर्शक प्रेम जाने कहां खो गया, चाचा- चौधरी ,रामायण ,चित्रहार सब कहां हवा हो गया।
रेडियो पर ख़त पढ़ना, कृषि दर्शन भी जाने कहाँ खो गया।
चैनल बहुत, अखबारे बहुत फेसबुक इंस्टांं भी सब आ गया।
निष्पक्षता दिखाने वाला मीडिया चकाचौंध में खो गया,
वाहवाही बटोरने की खातिर शान -ओ -शौकत का हो गया।
मनोरंजन और टीआरपी के चक्कर में जमीर इनका खो गया ऐ मेरे देश के चौथे स्तंभ तू ही बता तुझे यह क्या हो गया।
मासूम से न कर खिलवाड़ नकारात्मकता को रोक ज़रा,
खुद को निष्पक्ष बना लोगों का विश्वास फिर से जीत जरा।
एकता कोचर रेलन
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut badhiya rachna
Shukriya radha
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