"उफ्फ ये बच्चें"
सारा दिन फोन और कोई काम नहीं गुड्डू तुम्हें पहले कलास ।
और फिर योगा भी तो आजकल बच्चों का फोन पर। खाना खाते हुए भी टीवी चाहिए! मुंह से एक निवाला तक कहां नीचे उतरता है आजकल बच्चों के!! मां बड़बड़ा रही थी पर गुड्डू को कोई असर कहां था।
गुड्डू की दीदी जो सातवीं कक्षा में थी कल शाम को ही तो उसने अपने नन्हें हाथों से पहली बार पूरे घर को साफ किया था दो घंटे लगाकर ।पूरे फर्श को यूं चमका दिया मानों दर्पण की जरूरत ही नहीं थी। जो भी काम करती पूरे मन से करती।
गुड्डू पर दीदी चिल्लाई गुड्डू आज मैं तुम्हारी सारी गेम्स डिलीट कर दूंगी। जब देखो गेम्स खेलती हो ।और अपने खिलौने भी जहां देखो वहां फेंक रखे हैं तुमने ! पहले यह बैंड पर बिखरे खिलौने समेट कर रखो नहीं तो मैं आज तुम्हारी गेम डिलीट करने वाली हूं। मैं सच कह रही हूं गुड्डू!!
दीदी चिल्लाई।
नहीं-नहीं मत करों न !!
पर दीदी ने तो एक गेम डिलीट कर दी। और गुड्डू पूछने लगी अच्छा कौन सी डिलीट कर रही हो?? बार्बी वाली मत करना जैसे गुड्डू तो आदि हो गई थी।
पता था फिर डाउनलोड हो जाएगी। पर गुस्सा या नाराजगी उसके स्वभाव में नहीं था। पर दीदी को तंग करना आहा!! उसका तो मजा ही अलग था। एक गेम डिलीट करने पर गुड्डू ने दीदी की चोटी खींची और बाहर बालकनी में भाग गई। मां और पापा सब देख रहे थे ।पापा ने जल्दी से गुड्डू के बाहर जाते ही जाली वाले दरवाज़े की चटकनी लगा दी। गुड्डू जो अभी दूसरी कक्षा में ही थी थोड़ा रोने लगी। पहले धीरे फिर समय बीतने के साथ रोना भी तेज हो गया। अब गुड्डू का स्वभाव तो खिलखिलाना था ज्यादा देर तक रोये भी कैसे ।उसने दरवाजा जानबूझ कर खड़खड़ाना शुरू कर दिया पर दरवाजा खोला नहीं गया।
घर पर सब को लगा कि अब गुड्डू शायद समझ जाए ।उसे शरारत सूझी और बालकनी में रखी दो फीट लंबी पिचकारी को भर लिया। सभी को लगा शायद खेलने लगी ।मगर गुड्डू ने जाली वाले दरवाजे से पूरा अंदर तक पानी डालना शुरू कर दिया था। बस फिर क्या था दीदी चिल्लाई क्योंकि उसने बहुत देर लगाकर घर साफ़ किया था।
दरवाजा खोल दिया गया। गुड्डू अंदर बैठी मोबाइल देख रही थी और सब मिलकर घर साफ़ कर रहे थे ।
हंसी भी आ रही थी !और गुस्सा भी !मां ने समझाया कि बेटा इस तरह से आप घर के अंदर तो आ सकते हो पर अब हम आपसे बात नहीं करेंगे क्योंकि आपको तो बस फोन और टीवी से ही प्यार है। ऐसा करके आप हमसे तो जीत सकते हो ।पर आप सब के दिलों में तभी स्थान बना पाओगे जब आप मीठी-मीठी बातों के साथ अपना हर काम समय पर समय पर करोगे। चाहें वह पढ़ना हो या फिर बड़ों की बात मानना या अच्छी बातों के रूप में घर को साफ रखना आदि।
गुड्डू मासूमियत भरे अंदाज से सिर हिलाते हुए सब सुन रही थी। क्योंकि गुड्डू हर बात को ध्यान से सुनती थी और आगे जवाब देना उसकी फितरत में नहीं था ।ऐसा लग रहा था मानों! उसके नन्हे कदम आकाश की ऊंचाइयों को छूने लगेंगे ।
कुछ पलों के बाद सब शांत होने पर गुड्डू टीवी देख रही थी ।और मां चिल्ला रही थी !!
गुड्डू -गुड्डू टीवी बंद कर दो। आखिर कब तक चलेगा ??
ऐसा उफ्फ यह बच्चें!!!!
तो दोस्तों कैसी लगी आपको ये कहानी । बच्चों की यह शरारतें हम सभी को यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि हमें बच्चों को नियमों में बांधकर उनकी दिनचर्या फिक्स कर देनी चाहिए। जैसे समय पर टीवी देखना। समय पर खेलना या घर के कुछ कामों में मदद करना। अगर हम सब बड़े भी बच्चों के साथ दिन में कुछ समय बिताएंगे तो निश्चित ही उनका ध्यान केवल मोबाइल पर ही नहीं रहेगा । और वे अपने जीवन को बेहतर बना पाएंगे आप सबके साथ भी ऐसा कुछ होता है तो आप भी क्या उन्हें शेयर करना चाहेंगे और अपने सुझाव भी। तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं ।मुझे आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा प्यारे दोस्तों।
एकता कोचर रेलन
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.