सदियों से पुरुष नारी पर इल्ज़ाम लगाता आया है नारी का कंधे से कंधा मिलाकर चलना कई बार उसे स्वीकार नहीं होता ।
और वह चाहता है नारी को पत्नीव्रता के रूप में देखना। उसे घर की मालकिन तो कह दिया पर घर के बड़े -बड़े फैसलों में अभी भी उसका निर्णय जरुरी नहीं कि स्वीकार्य हो।
एक नारी सिर्फ कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलना चाहती है पर पुरुष को यह हर बार जरूरी नहीं स्वीकार्य हो। अपनी आँखों के कोरों तक जाने कितने भाव समेटे रखती है और पुरुष उससे सीता बनने की चाहत रखता है
पुरुष हो ना!! तभी बात करते हो पहले सीता बन दिखाओ
जब तुम राम बनोगे तो सीता स्वत: ही बन जाऊंगी
जब तुम कृष्ण बनोगे तो राधा का रुप धर आऊंगी
प्रेम तक स्वत: ही तुम तब पहुंच जाओगे
हाँ तभी मेरे राम बन पाओगे
पर तब तुम ये ना कह पाओगे
कि मैं सीता बनूं या राधा
तुम स्वत:ही इन सब मापदंड से बहुत दूर चले आओगे
जहां तुम्हारी नज़र तुम्हें,
हर हाल में प्रेम की ऐसी अनुभूति करायेगी
कि तुम्हें मुझ में अपनत्व ही दिखेगा
पुरुष हो ना!! तभी बात करते हो पहले सीता बन दिखाओ
नारी सिर्फ अपनेपन और आदर भाव चाहती है
आगे नहीं कन्धे से कन्धा मिलाकर चलना चाहती है
उसे सात जन्म नहीं हर पल साथ चलना है
उसे भी घर के बड़े फैसलों में अपना पक्ष रखना है
पुरुष हो ना!! तभी बात करते हो पहले सीता बन दिखाओ
तुम नग्नता या ओछेपन की बात करते हो
तुम अपने स्वाभिमान की बात करते हो
माँ नग्नवस्था में ही जन्म देती है
माँ खुद का आँचल भिगो कर बच्चें को सुख देती है
पुरुष हो ना!! तभी बात करते हो पहले सीता बन दिखाओ
जिस नग्नता कि तुम बात करते हो
वही नारी के साथ तुम्हें पुरूष भी ओछेपन में दिख जाएंगे
अम्बर कहीं काला कहीं सफेद निर्मल भी दिखता है
जहां तुम्हारी नज़रें ऐसा दृश्य देखें
वहां तुम भी भोगी कहलाओगे
कहो क्या कभी समानता का अधिकार सोच भी पाओगे
पुरुष हो ना!! तभी बात करते हो पहले सीता बन दिखाओ
एकता कोचर रेलन
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
यें सिर्फ समाज के वह पहलू हे जो कभी प्रत्यक्षरूपी नहीं हुऐं,जो दूसरों के लिए बने हैं स्वयं के लिए नहीं। बहुत खूब बहन
Virendra pratap singh शुक्रिया भाई आपका 🙏💐
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