मैं अक्सर चुप रहती हूँ

मैं अक्सर चुप रहती हूँ, बोल नहीं पाती कौई अपशब्द। मेरा अंतःकरण पी लेता है, हर दुख हर दर्द खुद ही। अपनों की खातिर सहेजती हूँ घर को , और फिर अधरों पर लाती हूँ मुस्कान

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Ektakocharrelan
Ektakocharrelan 11 Aug, 2020 | 1 min read


मैं अक्सर चुप रहती हूँ


मैं अक्सर चुप रहती हूँ,

 बोल नहीं पाती कौई अपशब्द।


मेरा अंतःकरण पी लेता है,

हर दुख हर दर्द खुद ही।


अपनों की खातिर सहेजती हूँ घर को ,

और फिर अधरों पर लाती हूँ मुस्कान।


क्योंकि मैं एक नारी हूँ!

मैं अक्सर चुप रहती हूँ!


जो पिरों कर रखना चाहती है ।

खुद से जुड़े मोती को एक माला में,


महसूस करती हूँ तकरार से,बातें बिगड जाएगी!  

संस्कार मुझे चुप रहने की सलाह देते हैं।


ऐसा नहीं कि मैं कुछ बोलना नहीं जानती,

चुप रहकर भी बोलता है मेरा अस्तित्व।


मेरा ना बोलना खल जाता है पूरे घर को ,

क्योंकि पूरे घर का आधार स्तंभ हूं मैं ।


जो जोड़ कर रखती है पूरे घर को,हाँ!!

मेरा बोलना हिला देता है पूरी नींव को।


क्योंकि संवारना होता है मुझे बच्चों का भविष्य,

ज्यादा बोलकर मेरे संस्कार गलत साबित हो जाते हैं।


क्योंकि मैं नारी हूँ!

मैं अक्सर चुप रहती हूँ


 सच है अक्सर उकेर देती हूं मैं चुप रह कर ,

मन के भाव पन्नों पर और बनती है इक नयी कविता।


क्योंकि अक्सर मैं चुप रहती हूँ।

क्योंकि मैं नारी हूँ!


एकता कोचर रेलन

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Comments

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  • ARCHANA ANAND · 5 years ago last edited 5 years ago

    बहुत खूबसूरत लिखा मैम

  • Ektakocharrelan · 5 years ago last edited 5 years ago

    शुक्रिया अर्चना जी ?

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