मेरे अपार्टमेंट के सामने प्रतिदिन सुबह सुबह एक फूल बेचने वाली महिला अपनी दुकान लगाती है, जिससे मैं अक्सर फूल खरीदा करती हूं। आम तौर पर बीस रुपए में काफी फूल आ जाते हैं।
एक दिन मैं सुबह उस दुकान पर गई तो वहां एक वृद्ध किन्तु तेजस्वी महिला को देखा,(जिसकी आंखों से अंगारे झड़ रहे थे)एवम् जो देखने में फूलवाली की सास प्रतीत हो रही थी।
मैंने उससे बीस रुपए के फूल मांगे और दस के बेलपत्र।
उसने प्रतिदिन की अपेक्षा आधे ही फूल दिए।मैंने उसे सौ रुपए का नोट दिया जिसे उसने रख लिया और बाकी पैसे वापस नहीं किए।
इतने में एक दूसरी महिला भाव पूछ कर चलती बनी।उस महिला को उसने कन्नड़ भाषा में उसका खानदान याद दिला दिया।
मैंने डरते डरते अपने बाकी पैसे मांगे तो उसने मात्र बीस रुपए वापिस किए।एक महानुभाव वहां से गुजर रहे थे जिनसे मैंने निवेदन किया कि कृपया इन काकीजी को हिसाब समझा दीजिए, ये मेरी भाषा नहीं समझ रहीं।
वह उन पर भी बरस पड़ी। मैंने चुपचाप खिसकने में ही अपनी भलाई समझी।
दूसरे दिन गुस्से में मैं उसकी दुकान पर गई तो मेरी वाली फूलवाली खड़ी थी।उसे कल की घटना बताते हुए मैंने कहा - तुम्हारी सास बड़ी ही झगड़ालू है, बहुत दादागिरी बताती है......वह बोली - "मैडम सुनिए तो सही -वह मेरी सास नहीं, मेरी मां है।"
यह सुनते ही सारे गिले शिकवे दूर करके किंकर्तव्यविमूढ़ होकर मैंने बोला - "चल जाने दे ....चलता है कभी कभी"!!
स्वरचित: एकता कश्मीरे
एकता कश्मीरे
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.