रुपयों का आभाव (लघुकथा)

रुपयों के आभाव मे कई लोग अपनी जिंदगी खो देते है

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Durgesh Nandani Agnihotri
Durgesh Nandani Agnihotri 19 Oct, 2020 | 1 min read

 कहानी -    रुपयों का आभाव (मेरी पहली कहानी 


एक दिन मैने अपना पुराना एल्बम निकाला,जिसमे 

बहुत सारी तस्वीरें थी । तस्वीरें देखते हुए उसमे मामा जी 

के बेटे की तस्वीर दिखी मुसकुराते हुए, वो तस्वीर देख 

मेरी आँखे भर आयी ।क्योंकि वो मुसकुराता हुआ चेहरा 

अब हमारे बीच नही था। वो दिन  मुझे आज भी याद है।


नित्या सुबह उठकर सबको चाय देती है,

तभी अचानक फोन की घंटी बजती है….. ट्रिन ट्रिन

अपनी चाय छोड़कर फोन को देखती, और कहती है 

 इतनी समय जूली का फोन,मन कुछ अंदेशा होता है।

        नित्या फोन उठाती है ….. हा जूली इतनी सुबह 

कैसे फोन किया ? कांपती हुई आवाज़ मे जूली 

     दीदी कहकर रूक गयी  ? क्या हुआ जूली कुछ तो

बोल । तभी जूली  बोलती है- दीदी मामा के बेटे का 

एक्सीडेंट हो गया है । इतना सुनकर नित्या के हाथ से 

फोन छूटकर जमीन मे गिर जाता  है।अचानक उसके  

पति की नीदं टूटती है तो देखता है नित्या जमीन  मे बेसुध 

बैठी है ।


सुरेश नित्या को सम्भालता है और पूछता है 

    क्या हुआ ? 

 नित्या कहती है उसके मामाजी के बेटे का एक्सीडेंट हो गया वो लोग यही लेकर आ रहे है  ।

चलो तुमको वही हास्पिटल चलते है ।जैसे ही हास्पिटल पहुंचने वाले थे अचानक रास्ते मे जूली का फिर  फोन आता है, रोती हुई आवाज़ मे- मन घबरा  जाता है,

कुछ तो बोल जूली , मेरा दिल बैठा जा रहा है,


दीदी भइया को दूसरे 

हास्पिटल मे रिफर कर दिया है,भइया का क्या  होगा

रोते हुए ……...रो मत हम पहुँच रहे है घर पर ख्याल 


आंखो मे आंसू भरे हुए जब हास्पिटल  ज्योंही पहुंची,

वह निशब्द खड़ी हुई 

मामी गले लग के फफक कर रोने लगी ,हाय नित्या तेरा 

प्यारा भाई हम सबको छोड़कर चला गया ।

मामाजी की आँखे बेबस लाचार थी ।

मुझे आज भी याद है वो शून्यता से भरी आँखे ….

काश ……

रुपयों का आभाव न होता,हम समय से पहले पहुँच के उनकी मदद कर पाते ।

तो आज वो हमारे साथ होते ।


स्वरचित 

Nandini






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