शीर्षक - " ज़िंदा ज़ख़्म "
भूलकर भी कैसे भूलाऊँ तुमको ।
ज़ख़्म ये... कैसे दिखाऊँ तुमको ।।
रूठकर बैठे हो.. मेरी जाँ मुझसे ।
तुम बताओ कैसे मनाऊँ तुमको ।।
मेरी रूह में....... घर कर गये हो ।
वजूद से अपने कैसे हटाऊँ तुमको ।।
बहुत ऐहतियात से तोड़ा दिल को मेरे ।
अब कौनसे खिलौने से रिझाऊँ तुमको ।।
करके बेवफ़ाई इश्क़ में सताया " काज़ी " ।
अब कौनसे रिश्ते से....... सताऊँ तुमको ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 ,अहिल्या पल्टन ,इक़बाल कालोनी ,
इंदौर ,मध्यप्रदेश
Comments
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wah
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