ग़ज़ल / मेरे अब्बू

अपने पिता को शब्दपुष्पों से श्रद्धांजलि

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Dr.Wasif Quazi
Dr.Wasif Quazi 13 Jul, 2022 | 1 min read

 ग़ज़ल ( चंद अश'आर ) 🌺



मेरा दिल और जान थे अब्बू ।

बस... मेरी पहचान थे अब्बू ।।


उनको देखकर मैं जीता था ।

ख़ुशियों का सामान थे अब्बू ।।


उनके जैसा बस बनना मुझको ।

एक... उम्दा इंसान थे अब्बू ।।


मेरा मंदिर ....मेरी मस्जिद वो ।

मेरे लिए तो भगवान थे अब्बू ।।


तसलीम करता हर फ़न उनको ।

ख़ूबियों की... खदान थे अब्बू ।।


पढ़ लेते थे वो मेरे दुख़ों को ।

मुझसे कहां....अंजान थे अब्बू ।।


शोहरत भी फ़ीकी है "काज़ी " ।

मेरा ग़ुरूर .....अभिमान थे अब्बू ।।



©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी ,इंदौर

©काज़ीकीक़लम

©ख़्याल काज़ी के

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