ग़ज़ल ( चंद अश'आर ) 🌺
मेरा दिल और जान थे अब्बू ।
बस... मेरी पहचान थे अब्बू ।।
उनको देखकर मैं जीता था ।
ख़ुशियों का सामान थे अब्बू ।।
उनके जैसा बस बनना मुझको ।
एक... उम्दा इंसान थे अब्बू ।।
मेरा मंदिर ....मेरी मस्जिद वो ।
मेरे लिए तो भगवान थे अब्बू ।।
तसलीम करता हर फ़न उनको ।
ख़ूबियों की... खदान थे अब्बू ।।
पढ़ लेते थे वो मेरे दुख़ों को ।
मुझसे कहां....अंजान थे अब्बू ।।
शोहरत भी फ़ीकी है "काज़ी " ।
मेरा ग़ुरूर .....अभिमान थे अब्बू ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी ,इंदौर
©काज़ीकीक़लम
©ख़्याल काज़ी के
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.