शीर्षक - " गुज़र गया एक और साल "
विधा - नज़्म / काव्य रचना
इश्क़ की मीठी बतियां और तक़रार भी हुई ।
कभी आया पतझड़ ,कभी बहार भी हुई ।।
तेरी चाहत की छांव में ज़िंदगी गुज़ार दी ।
सौंपा ख़ुद को मैंने अपनी ख़ुशियाँ वार दी ।।
कहाँ से कहाँ पहुंच गये बात ही बात में ।
गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में ।।
ख़ुशबू की तरह आयी थी तुम ज़िंदगानी में ।
हो ख़ूबसूरत एक परी मेरी कहानी में ।।
साये की तरह साथ रही धूप-छांव में ।
बस गई हो अब मेरी चाहत के गांव में ।।
लगता नहीं है डर मुझे अब दिन और रात में ।
गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में ।।
इश्क़ के हसीं सफ़र की रहगुज़र हो तुम ।
मंज़र ए ख़ुशगवार हो ,मेरी नज़र हो तुम ।।
हूँ दुआ-गो इस सफ़र में साथ तुम रहो ।
हूँ तुम्हारी ,बस तुम्हारी ,दिन-रात तुम कहो ।।
कुछ भी नहीं रक्खा है शह और मात में ।
गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में ।।
गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी * शायर *
अहिल्या पल्टन ,इंदौर
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.