गुज़र गया एक और साल

मुहब्बत पर मेरी एक नज़्म

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Dr.Wasif Quazi
Dr.Wasif Quazi 12 Jul, 2022 | 1 min read

शीर्षक - " गुज़र गया एक और साल "     

विधा - नज़्म / काव्य रचना




इश्क़ की मीठी बतियां और तक़रार भी हुई ।

कभी आया पतझड़ ,कभी बहार भी हुई ।।

तेरी चाहत की छांव में ज़िंदगी गुज़ार दी ।

सौंपा ख़ुद को मैंने अपनी ख़ुशियाँ वार दी ।।

कहाँ से कहाँ पहुंच गये बात ही बात में ।

गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में ।।



ख़ुशबू की तरह आयी थी तुम ज़िंदगानी में ।

हो ख़ूबसूरत एक परी मेरी कहानी में ।।

साये की तरह साथ रही धूप-छांव में ।

बस गई हो अब मेरी चाहत के गांव में ।।

लगता नहीं है डर मुझे अब दिन और रात में ।

गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में ।।


इश्क़ के हसीं सफ़र की रहगुज़र हो तुम ।

मंज़र ए ख़ुशगवार हो ,मेरी नज़र हो तुम ।।

हूँ दुआ-गो इस सफ़र में साथ तुम रहो ।

हूँ तुम्हारी ,बस तुम्हारी ,दिन-रात तुम कहो ।।

कुछ भी नहीं रक्खा है शह और मात में ।

गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में ।।

गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में ।।


©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी * शायर *

 अहिल्या पल्टन ,इंदौर 


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