असली उड़ान

असली उड़ान सिर्फ अपने पंखों के भरोसे ही सम्भव है।

Originally published in hi
Reactions 1
537
Sangeeta Pandey
Sangeeta Pandey 23 Oct, 2020 | 1 min read

"बकुल! मेरी चाय दो।"

"भाभी! मेरा दुपट्टा कहाँ है?"

"बकुल! मेरी पूजा की थाली तैयार कर दी या नहीं?"

"बहू जी! दूध ले आया।"

फोर फर्स्ट क्लास पास बकुल की सुबह हर दिन इसी तरह से होती। बकुल का विवाह सचिवालय में कार्यरत मुकुन्द से दो साल पहले हुआ था। बकुल देहरादून की रहने वाली थी और शादी के बाद दिल्ली आ गयी। दिल्ली आकर वो पूरी तरह से गृहस्थी में रम गयी। सारा दिन सबका खयाल रखना ही उसकी जीवन चर्या बन चुकी थी।

      बकुल बचपन से ही मेधावी और हुनरमंद थी। बचपन से ही वो जीवन में कुछ कर दिखाना चाहती थी। घर, स्कूल, पड़ोस और रिश्तेदार, सभी उसे स्नेह करते। दिल्ली में शादी हुई तो सबको लगा बकुल के भाग्य खुल गए। लेकिन बकुल यहाँ आकर चारदीवारी में क़ैद हो कर रह गयी। कहने को तो वो आज़ाद थी लेकिन उसे अपनी आज़ादी को महसूस करने तक की फुर्सत न थी। यहाँ भी उसे सम्मान तो मिलता किन्तु उसके पसंद और खुशियों के बारे में सोचने की फुर्सत किसी को भी नहीं थी।

एक दिन बकुल की कॉलेज के जमाने की दोस्त मृणालिनी उससे मिलने आयी। मृणालिनी उसे देखकर सन्न रह गयी। हमेशा टिप-टॉप रहने वाली सबकी चहेती बकुल एक साधारण सी मुड़ी हुई साड़ी में, जैसे-तैसे जूड़ा बनाये हुए सबके हुकुम पर एक पैर पर नाच रही थी।

मृणालिनी एक कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर थी। वो सेमिनार अटेंड करने दिल्ली आयी थी। अतः उसे दो तीन दिन के लिए दिल्ली में रुकना था। वो बकुल की ऐसी हालत देखकर बेचैन हो उठी। उसने बकुल से कहा,"तुमने ये क्या हाल बना लिया है अपना? हमेशा क्लास में अव्वल आने वाली लड़की सिर्फ झाड़ू, पोंछा और किचेन तक सिमट के रह जाएगी ये भला किसने सोचा था। तुम कोई जॉब करने को क्यों नहीं सोचती। तुमने तो अपना जीवन गुलामों की तरह बना रखा है।"

बकुल को कोई फर्क न पड़ा उल्टे उसने कहा कि उसके पति अच्छा कमाते हैं, वो बहुत खुश है।अब ये सब उसकी आदत बन चुकी है, उसे अच्छा लगता है ये सब करना। ख़ैर, बुझे मन से मृणालिनी वापस चली गयी।

पाँच छः महीने ही गुजरे थे कि मृणालिनी को बकुल के पैर के फ्रैक्चर की ख़बर मिली। किचन में भागदौड़ करते हुए उसका पैर फिसल गया था। डॉक्टर ने छः महीने का कंपलीट बेडरेस्ट बोल दिया था। मृणालिनी खबर सुनकर उससे मिलने आयी। बकुल ने अपनी निराशा और तत्कालीन पारिवारिक समस्या के विषय में बताया। उसने कहा, "जिस परिवार का ध्यान रखने के लिए मैंने दिनरात एक कर दिया उसी परिवार के लोग आज बात-बात पर ताने देते हैं। माँजी और छोटी ननद मुझे महारानी कहती हैं। मुकुन्द भी तनाव में रहते हैं। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूँ। अभी तो सिर्फ पन्द्रह दिन ही गुजरे हैं और ज़िंदगी के फ़लसफ़े नज़र आने लगे।"

बचपन की दोस्त होने के कारण मृणालिनी उसके टूटने के दर्द को भलीभांति अनुभव कर पा रही थी। तभी उसके मन में एक विचार कौंधा। उसने बकुल को NET का फॉर्म अप्लाई करने का सुझाव दिया। पहले तो बकुल ने ना नुकुर किया लेकिन अन्ततः मान गयी। "बिस्तर पर पड़े पड़े बोर होने से बेहतर है कि कुछ सृजनात्मक किया जाए।" यह सोचते हुए बकुल परीक्षा की तैयारी में जुट गई। बकुल अब चलने फिरने लगी और परीक्षा दिया। बकुल के परीक्षा का परिणाम सकारात्मक रहा। उसका चयन JRF के लिए हो गया। तद्पश्चात बकुल ने पीएचडी में प्रवेश ले लिया। कठिन परिश्रम के साथ बकुल ने तीन वर्षों में ही पीएचडी पूर्ण कर ली। जीवन में गति का अनुभव हो रहा था। बकुल दिनोदिन स्वावलंबन की तरफ अग्रसर थी। परिवार के लोगों का रवैया भी बदल रहा था। लोग सम्मान करने लगे थे। सास ने पूजा की थाली ख़ुद सजानी शुरू कर दी थी। ननद ने अब अपने ही नही वरन भाभी के कपड़े प्रेस करने शुरू कर दिया था। पतिदेव अपनी चाय के साथ बकुल के लिए भी चाय बनाने लगे थे।

बकुल ने अब विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में नौकरी आरंभ कर दिया था। इस बार जब मृणालिनी उसके घर आई तो पुनः स्तब्ध थी किन्तु इस स्तब्धता का कारण अप्रतिम प्रसन्नता थी। बकुल का स्वाभिमान दैदीप्यमान हो रहा था। मृणालिनी को लग रहा था कि बकुल अपनी योग्यता के बल पर गुलामी की बेड़ियों को काट कर आज़ाद हो गयी है। वस्तुतः असली आज़ादी की उड़ान अपने पंखों के भरोसे ही उड़ी जा सकती है दूसरों के भरोसे नहीं।

©®Dr Sangeeta Pandey

1 likes

Published By

Sangeeta Pandey

drsangeetapandey1

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.