नमनमंच
दीदार
जब से
दीदार किया तेरा
भूल ना पाया तेरा चेहरा
बहका हूं मैं बहुत घनेरा
यह सच है बहुतेरा
कब हुआ सवेरा
जान ना पाया मैं उठा अबेरा
बहका बहका सा रहता दिल मेरा।
ख्वाबों में खोया रहता अकेला
सपने संजोकर होता झमेला।
कसम से जब से हुआ दीदार तेरा
रो-रो कर बुरा हाल हुआ मेरा।
बहका बहका सा रहा दिल मेरा
कुछ तो करो तुम मेरा केरा -नेरा
कहीं मैं बन ना जाऊं लुटेरा
अभी तो सपनों में डाला है डेरा
कब तक टूटेगा सपनों का घेरा।
अब कब लगेगा तुम्हारा फेरा।
कब तक होगा मेरा बसेरा
तिल-तिल के मरता रहा मैं घनेरा
बहका बहका सा दिल रहता है मेरा।
दीदार को भटकता रहता साझं सवेरा।
आंखों में बस गया है तेरा चेहरा
तेरे बिन नहीं रह सकता अकेला
याद दिलाता है बचपन का वो मेला।
जब चोरी से मारता था ढेला।
तुझे चिढ़ाने को लगाता था ठेला।
मैंने किया तुझसे खेला
बनता था मैं गेला
मेरे साथ चलता था दोस्तों का रेला।
लेकिन कोई नहीं बना चेला
लेकिन तब भी मै था तेरे दीदार को वेला
और आज भी अकेला।
डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
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