एक चिंतनीय प्रश्न
दूसरे के सुख से दुखी क्यों?
**************************
आज भौतिकता की चकाचौंध में आदमी जीवनयापन कर रहा है और उसकी सोच भी नकरात्मक होती जा रही है जो इंसान को गर्त की ओर ले जा रही है। साकारात्मक सोच सकती जा रही है और इंसान इतना दुखी रहता है और वो मानसिक रोगों से ग्रस्त हो रहा है। आज इंसान अपने दुख से दुखी नहीं दूसरे के सुख से ज्यादा दुखी हो रहा है।और अशांति की ओर अग्रसर हो रहा है और अनेक प्रकार की बीमारियों से जूझ रहा है। यदि आप सुखी रहना चाहते हैं तो कमी में भी गुणों को ढूंढें और यदि दुखी रहना चाहते हो तो हर समय कमियां ढूंढते रहे।सोच साकारात्मक रखें।
लोग ईर्ष्या तब करते हैं जब वे अपने जीवन में संतुष्ट नहीं होते। जब वे संतुष्ट नहीं होते तब वे खुश नहीं होते। वे स्वयं को आनंदित व सुखी महसूस नहीं कर पाते। अतः ऐसे लोग अपनी खुशियों में खुश ना रहकर दूसरों की खुशियों से दुखी रहते हैं।
ईर्ष्या एक भाव है जो किसी के पास कुछ ऐसी चीज होने की वजह से आ सकती है, जो आप पाना चाहते थे या अगर किसी के पास कोई चीज आपसे ज्यादा है। अगर आप में किसी तरह की अपूर्णता है, जिसकी वजह से दूसरों के सामने आप अच्छा महसूस नहीं कर पाते हों, तो इससे भी कई बार ईर्ष्या पैदा हो जाती है। ईर्ष्या में मुख्य रूप से एक अपूर्णता का भाव छिपा होता है। यदि आप आनंद के भाव से पूरी तरह भरे हों, तो आपके भीतर किसी के भी प्रति ईर्ष्या का भाव नहीं होगा। जैसे ही आपको ये लगता है कि आपके बगल में बैठे आदमी के पास आपसे कुछ ज्यादा है और आप उससे खुद को कम महसूस करने लगते हैं तो ईर्ष्या का भाव पैदा होता है। अगर यहां आपसे बेहतर कोई दूसरा व्यक्ति मौजूद है तो ईर्ष्या पैदा हो सकती है। यदि आप खुद में मस्त हैं तो ईर्ष्या का कोई प्रश्न ही नहीं है।
मैं एक छोटे से उदाहरण सबके समक्ष रख रही हुं। हमारे पड़ोस में एक संपन्न परिवार रहता है उनका काम सदा दूसरे के काम में कभी निकालना है। कभी किसी की उन्नति बर्दाश्त नहीं कर सकते। हमारे यहां पर नई कार आई तो ईष्या जलन की आग भड़कने लगीऔर तब तक शांत नहीं होती जबतक दूसरे से मन की भड़ास न निकाल लें। दूसरे पड़ोसी से कहने लगी अरे ऐसी कार तो हम खड़े खड़े ले लेते लेकिन हम नहीं लाते इसके पीछे कारण है आज दिन एक्सीडेंट हो रहे हैं तो फिर हम मौत को क्यूं बुलावा दे।इतना सुनते ही मैं अपने को रोक नहीं पाई
और मैंने जवाब दिया जब ऊपर से बुलावा आता है तो न डाक्टर काम आता है ना ही दुआ काम आती है और ना दवा,ना मंत्र,ना तंत्र ।और यदि सांसें बाकी है तो मुर्दे भी उठकर बैठ जाते हैं। सुनते के साथ एकदम चुप हो गई जैसे सांप सूंघ गया हो।
ईर्ष्या का सबसे मुख्य कारण सफलता क्योंकि जब आप सफल होने लग जाते हैं तो लोग आपसे जलने लग जाते हैं .जैसे अगर किसी के घर में किसी की नौकरी लग गई तो सामने वाले घर में लड़ाई शुरू हो जाती है तो इसे कहते हैं ईर्ष्या. दरअसल लोग अपने दुख से दुखी नहीं है लोग दूसरों के सुख से दुखी है ।
ईर्ष्या एक ऐसा शब्द है जो मानव के खुद के जीवन को तो तहस-नहस करता है औरों के जीवन में भी खलबली मचाता है। यदि आप किसी को सुख या खुशी नहीं दे सकते तो कम से कम दूसरों के सुख और खुशी देखकर जलिए मत। यदि आपको खुश नहीं होना है न सही मत होइए खुश, किन्तु किसी की खुशियों को देखकर अपने आपको ईर्ष्या की आग में ना जलाएं।
दूसरे की आलोचना टीका टिप्पणी करने से अच्छा है अपनी जिंदगी में लगे हुए मैल को साबुन रूपी समीक्षा के द्वारा धोकर साफ किया जाए। हर चीज बदली जा सकती है सिवाय गिरी हुई सोच के। दूसरे के सुख से दुखी होने की सोच इंसान की प्रगति में बाधक बनती है और उसे अच्छे मुकाम तक नहीं पहुंचने देती।
कहने का तात्पर्य है कि इंसान ने अपने दुखों का इजाफा खुद किया। ईष्या,जलन,डाह ,स्वार्थ की प्रवृत्ति से खुद ही दुखी सुखी हो रहा है। आज इंसान इतना स्वार्थी हो गया कि उसके आगे कुछ नहीं दिखाई देता । अपनी स्वार्थ पूर्ति में चाहे जितना नुकसान हो उसे झेलने की क्षमता रखता है किन्तु स्वार्थ नहीं छोड़ता। इसलिए स्वस्थ् मानसिकता में जीना चाहिए जो हमें निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहे।मै उन लोगों को चेतावनी देती हूं गलत काम का नतीजा बुरा ही होता है ।
अफ़सोस की बात है आज के समाज की कि लोग किसी के दुःख को देखकर तो बहुत दुखी होते हैं सहानुभूति जताते हैं लेकिन किसी की खुशी को देखकर खुश नहीं होते। किसी की उन्नति से किसी के गुणों से जलते हैं और दुखी होते हैं और पूरा प्रयास करते हैं कि सामने वाले का बुरा हो। हम सभी को इससे बचना चाहिए।
अक्सर समाज में देखा जाता है कि कोई आगे बढ़ रहा है,किसी की उन्नति हो रही है, नाम हो रहा है किसी का अच्छा हो रहा है तो अधिकांश लोग ऐसे देखने को मिलेंगे जो पहले यह सोचेंगे, कैसे आगे बढ़ते लोगों की राह का रोड़ा बना जाए। उनको कैसे नीचा दिखाया जाए। कैसे समाज में उनकी मजाक बने और कैसे उनकी खुशियां छीनी जाए।
बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो किसी को आगे बढ़ता देख किसी की उन्नति होते देख आनंद का अनुभव करते हैं या खुश होते हैं।
एक मुक्तक के माध्यम से अपने मन के भाव को शब्दों का बाना पहनाया है देखिए:-
कपट खाद से फसल उगाकर,खूब कमाये नोट।
अंत समय कुछ काम न आया,भूल गए सब वोट।
मरघट के लिए घर से चला,रोता सब परिवार
खोटे धन से भरी तिजोरी,शूल दिलाये चोट।
आज इंसान इस बात से दुखी नहीं होता कि उसकी जिंदगी में दुख है वह इस बात से ज्यादा दुखी है कि दूसरे की जिंदगी में उससे ज्यादा सुख है। इसी बात को लेकर वो ईष्य
सेंसर जाता है ईर्ष्या बोलने में एक आम समस्या लगती है लेकिन अगर यह बढ़ जाए तो हमें इसके बारे में तुरंत सोचना और समझना चाहिए। अगर हम लगातार किसी से ईर्ष्या कर रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि या तो हमारे मै आत्मविश्वास की कमी है या हम उसकी सफलता से बहुत ज्यादा दुःखी है।
*************
डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
स्वरचित व मौलिक रचना
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.