दिन रात बेटियों पर अत्याचार देख ,हर टी वी
चैनल पर रोज बेटियों पर हुए ज़ुल्म को देख कवि मन चीत्कार कर उठा और दिल से जो आवाज आई वो शब्दों में बंध कर कविता में उतर आई।
बेटियां
कब तलक हैवानियत मे चटकती है बेटियां।
न्याय पाने को सदा से भटकती है बेटियां।(1)
प्यार से दिल में सपन कितने सजोये थे कभी
होठ सीकर खून को ही गटकती है बेटियां,(2)
कब तलक जुल्मों सितम की आग में जलती रहे
वक्त जैसा भी रहे फिर पलटती है बेटियां(3)
जब तलक वो बहशियों की ना उधेड़े खाल को।
चैन भी वो पा नही सकेगी समझती है बेटियां(4)
आज भी अस्मत लुटेगी बीच चौराहे अगर
नोच डालेगी उसी पल चमकती है बेटियां।(5)
सह लिए हमने जमाने के सभी ताने सुने
ठान हमने अब लिया ना तड़पती है बेटियां(6)
डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
स्वरचित व मौलिक रचना
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