इंटरनेट का नशा
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सूचना क्रांति के युग में
नई पीढ़ी के साथ चलने को
नेट सीखें बिना हाथ मलने को
आज इंटरनेट बना महान
विज्ञान का बड़ा वरदान
बूढ़ों को भी बना दिया जवान
पढ़ाई लिखाई का रखें ध्यान।
धर्म ध्यान की उम्र में
पकड़ी दादी ने इंटरनेट कमान
इंटरनेट का नशा हुआ जब भारी
तो कहे मै क्यों रहूं न्यारी
मैं तो हूं प्रीतम की प्यारी
इस घर की राज दुलारी
ऐसे में मैं भी पीछे क्यों रहूं
देखी मैंने दुनिया सारी।
निभाती रही सारी दुनियादारी
रिश्तों की खिलाती रही फुलवारी
बहू गई करने को खरीदारी
छोड़ी पोते की जिम्मेदारी
पोता कर रहा था छेड़ खानी
कहने पर भी बात न मानी
दादी भी चपत लगा कर मानी
नन्हे मियां रूठे जानी।
दादी को सबक सिखाने को ठानी
इंटरनेट के नशे में मशगूल
पोते को भी गई भूल
लोटपोट कर रहा था खूब
लिपटा रहा बदन पर धूल
अचानक से वो
सिर के बल गिरा चुभे शूल
चिल्लाया भरपूर
लेकिन इंटरनेट के नशे के सामने
पोते को ना गई थामने
खून देख नशा हुआ दूर
दौड़ी मोबाइल हुआ चकनाचूर
डाक्टर की दुकान थी सुदूर
हाय मैं कैसे बन गई क्रूर
टूट गया सब गुरुर
मुआ इंटरनेट ने किया मजबूर
अब तो बहू लेगी खबर जरुर
कैसे भी बचाओ मुझे हजूर
मुझे सारी बातें मंजूर
पोते को खिलाने लगी खजूर
दादी का उतरा नशा भरपूर।
डाक्टर से बोली
जल्दी करो इसको ठीक
पैसे ले लो नीक
हैं यह बहुत वीक
आ रही बारंबार छींक
पान से थूकती रही पीक
अब ना चलूंगी लीक
पहले घर परिवार
बाद में इंटरनेट संसार।
डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
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