वसंत -आशा का संचार

वसंत के साथ एक नई आशा व उत्साह का संचार होता है , असफलताओं व पुरानी बातों को भूलकर एक नई शुरुआत के लिए यह उत्तम अवसर है।

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Dr. Archana verma
Dr. Archana verma 04 Feb, 2022 | 1 min read





वसंत के आगमन के साथ वातावरण खुशनुमा प्रतीत होने लगता है ,अनेक धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठानों की शुरुआत के लिए वसंत उत्तम समय माना जाता है। वसंत पंचमी उत्सव भारत के पूर्वी क्षेत्र में बड़े उत्साह से मनाया जाता हैं, इसे सरस्वती देवी जयंती के रूप में पूजा जाता हैं, जिसका महत्व पश्चिम बंगाल में अधिक देखने को मिलता है। बड़े पैमाने पर पूरे देश में सरस्वती पूजा अर्चना एवम् दान का आयोजन किया जाता हैं । इस दिन को संगीत एवम् विद्या को समर्पित किया गया है। माँ सरस्वती सुर एवम् विद्या की जननी कही जाती हैं, इसलिये इस दिन वाद्य यंत्रो एवम् पुस्तकों का भी पूजन किया जाता है।

प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा गया है, उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम कहा जाता है , जब फूलों पर बहार आ जाती है खेतों में सरसों का फूल मानो सोने जैसा चमकने लगता है , जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं हैं , आमों के पेड़ों पर मांजर (बौर) आ जाती है और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगती हैं, भंवरों की गुंजन मन लुभाने लगती है, वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता है जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं। यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता है।

वसंत पंचमी को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है कि जब सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की, परंतु वह अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे, तब उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई। जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा।


सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं। वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पचंमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी। इस कारण हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन माँ सरस्वती की विधि-विधान से पूजा करने से विद्या और बृद्धि का वरदान मिलता है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की उपासना से बच्चों में वाणी दोष और पढ़ाई में मन ना लगने जैसी समस्याएं दूर होती हैं। 

वसंत का उत्सव अमर आशावाद का प्रतीक है। 

वसंत का मौसम जीवन में नई आशा व उमंग का प्रतीक है, पतझड़ में जिस प्रकार वृक्ष के पत्ते गिर जाते हैं और नई कोंपलों व बौरों की भीनी-भीनी खुशबू मन को उत्साहित करती है उसी प्रकार हमें भी अपने जीवन में से निराशा और असफलताओं को भुला कर एक नई आशा के साथ , पूर्ण ऊर्जा को समेट कर एक नई शुरुआत करनी चाहिए।

भक्ति और शक्ति के सुंदर सहयोग से यह जीवन और प्रकृति सुंदर हो उठते हैं। जीवन में आने वाले समस्‍त दुःखों को झेलने और सकारात्‍मक दृष्टि से देखने का विवेक उत्‍पन्‍न करने का यह उत्तम अवसर है। वसंत अर्थात आशा व सिद्धि का सुंदर संयोग, कल्पना और वास्तविकता का सुंदर समन्वय। वैसे भी कहा जाता है कि हमारा पर्यावरण व परिवेश हमारे कार्य, व्यवहार व स्वास्थ्य को प्रभावित करता है तो

बसंत का मौसम इन सभी मायनों में नये कार्यों व नई शुरुआत के लिए विशेष महत्व रखता है।


डॉ अर्चना वर्मा

लखनऊ उत्तर प्रदेश।

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