नवरस

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Divya Gosain
Divya Gosain 11 May, 2022 | 1 min read
नवरस

नवरस

नवरस,


केवल प्रेम रूप,


कुछ मीरा सा पूरा और कुछ राधा सा अधूरा,


विरह की तपन में तपा हर क्षण जिसका,

अधूरी उस उर्मिला का भी था प्रेम पूरा,


थे सती के मीठे से वो खारे अश्रु,

हर अंग में रमा था जिसके प्रेम पूरा,


नैनों से बरस रहा और अधरों पर सिमट रहा हो केवल प्रेम जिसका,

कुछ ऐसा अधूरा सा पूरा है प्रेम मेरा।


दिव्या G.

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Divya Gosain

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