कुछ तुम रूठे कुछ हम रूठे,
रिश्तों कि इस तकरार में उस नन्हीं के जाने कितने ख़्वाब हैं टूटे,
मां कि गोद और बाबा के कांधे पर मिलता था सूकून इतना,
आज अहम में बंट गया है देखो वो रिश्ता कितना,
सिखना था जिनसे सलीका ज़माने का,
वो दे गए वजह ताउम्र अश्क बहाने का,
नन्हें क़दमों से मीलों दूर अब चलना है मुझे,
मां, सीने से लगा लो मुझमें दिखेगा अपना ही अक्स तुझे,
पापा, जी भर देख लो ना इक बार अपनी इस गुड़िया को,
सहमा है दिल मेरा, ज़रा पंख लगा दो अपनी इस चिड़िया को।
दिव्या G.
💞
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.