जिंदगी

जिंदगी

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Divya Gosain
Divya Gosain 26 Jun, 2022 | 1 min read

"ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है,

क्यों देखें जिंदगी को किसी और की नज़र से हम..."


चंद लम्हों का है माजरा ये जिंदगी,

क्यों फ़िज़ूल गैरों पे इसे यूं बर्बाद करें हम,


ग़मों कि फहरिस्त भले लम्बी सही,

पर उसका भी अब क्या मलाल किसी से करें हम,


माना ऐबों कि गिरफ्त से महरूम मैं भी नहीं,

तो भला दर उसके पैमाने कि बयां कैसे करें हम,


रिवायत जिंदगी कि है बस चलते जाना,

तोहमत से बचा वो खुदा भी नहीं तो भला कैसे बचेंगे हम,


हैं मेहरबां वो हर खता पर भी मेरी,

बस अब हर इनायत का शुक्राना करेंगे हम।


दिव्या G.

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