तपिश

तपिश

Originally published in hi
Reactions 0
314
Divya Gosain
Divya Gosain 11 May, 2022 | 1 min read
तपिश

तपिश


इस मौन में एक खलिश सी है,

नम इन आंखों में बेतहाशा तपिश भी है,


ज़ख्म बेहिसाब बटोरें है ज़माने से हमने,

फिर भी न जाने तुझमें कैसी कशिश सी है,


मशगूल हैं ज़माना ऐब गिनने में मेरे,

बस तू दूर रहे उस फहरिस्त से ये गुज़ारिश मेरी है,


शर्तों पर जिन्दा हैं आज ये रिश्ते सारे,

अब खुली हवा में भी जैसे अजब बंदिश सी है,


बेहद करीब आकर दूर होते हैं रिश्ते जो,

उन एहसासों में ज़रा नरमी नुमाइश कि है,


माना मुकम्मल नहीं अभी किरदार ये मेरा,

पर वफ़ा मिले तेरी इतनी गुज़ारिश इस दिल कि है।


दिव्या G.

💞

0 likes

Published By

Divya Gosain

divyagosain

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.