"माँ"

Mother's day

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Divya Gosain
Divya Gosain 07 May, 2022 | 1 min read

"माँ"

आज कुछ तुझ पर लिखने चली थी मैं,

जाने क्या गुस्ताखी करने चली थी मैं।

कलम भी आज हँस पड़ी,

पूछा मुझसे उसने तुम शब्द कहाँ से लाओगी?

तेरी शख्सियत जिसने बनाई क्या उसके बारे में कुछ लिख पाओगी?


माँ, तेरे जैसा बनने की होड़ में,

मैं तो तेरा प्रतिबिंब भी ना बन पाई।

क्या कमाल की है ना तू,

उलझनों से भरी दुनिया में हमेशा मुस्कुराती है तू,


यूँही तू रहमत बरसाती रहना,

बस हर वक्त तू मेरे अंग संग ही रहना।


"माँ" आज कुछ तुझ पर लिखने चली थी मैं,

जाने क्या गुस्ताखी करने चली थी मैं।


दिव्या G.

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