अपने हिर्स के लिये उसको आग मे सजा दिया,
एक बेकसूर बेवा को यूँ आग मे बैठा दिया।
वो सात फेरे आग के यूँ नाकाम हुये,
जो देखे थे हसीं सपने ज्लील वो सरे आम हुये।
आग पे सिर्फ खाना बनाना था माँ ने सिखाया,
पर किस कदर झिंझोड़ती है इसकी लपटे ये दुनिया ने दिखाया।
जहा सरमे की ठंड को रही थी आग सुलझा,
वही एक सुनसान घर के किसी वीरान कमरे मे बिना आग के हवस की गरमाईश एक नारी को रही थी झुलसा।
पर जल जल के एक दिन वो बनेगी आफताब,
देखना तुम वही नारी पायेगी नारी सशक्तीकरण का खिताब ।
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