वो ,प्यार नहीं तो क्या था ?
जब मैं तुम्हारी एक झलक पाने के लिए न जाने क्या-क्या कर जाया करती थी ।
कभी छत पर तो कभी परदों से झांक कर तुम्हें देखा करती थी ।
वो ,प्यार नहीं तो क्या था ?
जब तुम्हारी आवाज़ किसी कोयल से कम न लगती थी,
हर वक्त बस तुमसे बात करने के बहाने ढूँढा करती थी ।
वो ,प्यार नहीं तो क्या था ?
जब तुम्हारी वो एक हसीं पर मैं दिल वार जाती थी,
और बस वो हसीन चहरा ही निहारती रहती थी ।
वो ,प्यार नहीं तो क्या था ?
जब केवल तुम्हारे मनाने के लिए तुमसे नाराज़ हुआ करती थी ,
हर वक्त जहन में बस तुम्हें ही याद किया करती थी ।
वो ,प्यार नहीं तो क्या था ?
जब तुम्हारे लाख कहने पर भी नहीं माना करती थी,
इस रिश्ते को सिर्फ दोस्ती से बढ़कर समझा करती थी ।
वो ,प्यार नहीं तो क्या था ?
जब एक तुम्हारे साथ के लिए सारी कायनात के खिलाफ हो चुकी थी,
पर, कहीं न कहीं अपने वजूद को ही खो चुकी थी ।
वो ,प्यार नहीं तो क्या था ?
वो ,प्यार नहीं तो क्या था ?
Kya wo pyar nahi tha
If that wasn't love what was it..
Originally published in hi
Komal Mittal
21 Feb, 2020 | 1 min read
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