जिनका दिन न गुज़रता था हमे देखे बिना ,
आज उन्होंने ही हमे यूँ नजरअंदाज कर दिया हमारी सुने बिना।
बहुत इतराते थे हम खुद पे,
के कोई धोका नहीं दे सकता हमे ,
आखिर नवाजा था खुदा ने ,
कुछ ऐसे बेमिसाल दोस्तों से हमे।
पर कहते है न ,
जरूरत से ज़्यादा तो अच्छाई भी होती है बुरी ,तो आज पहली बार दिल ने कहा ,'' शायद, हाँ
दोस्ती पे इतना गरूर भी नहीं था सही।''
न जानते थे हम ये रिश्ता ऐसे टूटेगा ,
जान से प्यारे उन दोस्तों का साथ ऐसे छूटेगा ,
न सोचा था जिनके दिलो -जान पे सिर्फ राज़ था मेरा ,भूल जायेगे वो ही हमे इक ऐसा भी आएगा सवेरा।
बेक़सूर होके भी हमे आज मिली है सज़ा
करके यूँ सरेआम जलील हमे कहते है वो अपने सिरदर्द की वज़ह,
अगर धोका मोहब्बत का होता तो न होता इतना दर्द ,
पर आज तो वही ठुकरा गए जो हर जख़्म पर देते थे मर्ज।
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