धरती के पुत्र है किसान
सभी के पालन हर है किसान
मिट्टी के से रक्षक है
ये अन्न के दाता है
राज करे ये धरती पर
काज करे ये धरती पर
खून पसीने से करते सिंचित
फसलों की हानी हो फिर भी नही किंचित
फर्क नहीं सैनिक और तुझ में
तूने पहरा दिया खेतो पर
उस ने दिया पहरा सीमाओं पर
है धरती पुत्र अब फर्क कहा
खेतो से प्यारा स्वर्ग कहा
नही जीना घर परिवार का पेट काट
खुशियों की तो फसल बाट
अब हालत बदल गए
राते अब निकल गई
खुशियों के बादल छाएं
खड़ी फ़सले अब दिल गाएं
नही चिंता पेसो की
अब सरकारे किसानों की
मत खड़े कर कंक्रीट के महल
मत कर इन स्वर्ग की भूमि पर ये खेल
सेवा से परे रख इस स्वार्थ को
मत छीन मां से फसलों को
हैं धरती पुत्र अब तू ही है
तारण हार
हैं धरती पुत्र अब तू ही है
पालन हार।
दक्षल कुमार व्यास
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