राज करने की नीति बढ़ती जा रही
कहीं इधर कहीं उधर
भ्रष्टाचार, स्वार्थ की राज-नीति
कहीं इधर कहीं उधर
रिश्तो की बलि चढ़ रही
कहीं इधर कहीं उधर
भाई भाई बट गए पार्टियों में
इज्ज़त नीलम है गलियों में
कही इधर कहीं उधर
भलाई करनी है खुद की
जनता की भूल बैठे हैं
कहीं इधर कहीं उधर
वादे वादियों में रह गए
नीतियां पेटियों में बंद हुई
कहीं इधर कहीं उधर
प्रचार करोड़ों का
विचार कोडियो का
कहीं इधर कहीं उधर
लड़ बैठे कार्यकर्ता
मौज में बैठे नेता
कठपुतली सी बनी जानता
डोर पकड़े बैठे है राजनेता
कहीं इधर कहीं उधर
राज करने की नीति
कहीं इधर कहीं उधर
दक्षल कुमार व्यास
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.